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__ ईस्वी सन् से पहले पाचवीं और छठवीं शताब्दियां मानव जाति के इतिहासमें अपूर्व थीं। वह क्रान्तिमय काल था। उसका प्रभाव स्थायी और चिरस्मरणीय था। सारे लोक में उस समय हलचल मची थी। प्रचलित सामाजिक प्रथाओं और धार्मिक मान्यताओं के विरोध में मानवों ने आवाज उठाई थी। भारत उससे अछूता नहीं था। किन्तु सौभाग्यवश यहीं पर सर्वज्ञ तीर्थकर महावीर का जन्म हुआ, जिन्होंने लोक को सत्य के दर्शन कराये और उसे सुख एवं शान्ति प्रदान की ! तूफान के बाद जैसे समुद्र शान्त और गम्भीर हो जाता है, वैसे ही भ० महावीर के सत्योपदेश से लोक सन्तुष्ट हुआ था ! प्यासे को जल और भूखे को भोजन जैसे तप्त करता है, वैसे ही मिथ्या अंधदृष्टि के लिये ज्ञान ज्योति तृप्ति का कारण है। __ भ० महावीर के शुभागमन के पहले से ही भारतवर्ष की दशा जटिल और मार्मिक बनी हुई थी। यहाँ के मनुष्यों पर अर्थ संकट उतना भयङ्कर नहीं था, जितना कि समाज और वमे का संकट विकट था। उनके कारण राजनीति भी परिवर्तन से अछूती नहीं रही थी। अतः उस क्रान्तिमय स्थिति पर एक विहंगम दृष्टि डाल लेना, भगवान महावीर के लोकोद्धारक कार्य का महत्व समझने के लिये आवश्यक है। आइये पाठक उसको देखिये।
आर्थिक स्थिति-तब भारतसे अर्थ संकट नहीं था। अव से तव का भारत लाख दर्जे अच्छा था। आजकल जैसा दारिद्रय और दुष्काल तव कहीं दिखाई नहीं पड़ता था। सदा