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________________ ( ३५५ ) ई० पूर्व सन् ५३ की निस्सन्देह सर्व प्राचीन प्रगट मूर्ति है | १ यह प्रतिमायें इस बात की साक्षी हैं कि भ० महावीर की मान्यता एक अतीव प्राचीनकाल से सारे भारतवर्ष में व्याप्त हो गई थी । कलिंग के कुमारी पर्वत पर भ० का समोशरण आया था और वहाँ भी ई० पूर्व द्वितीय शताब्दि की जिन प्रतिमायें उपलब्ध है | २ उधर दक्षिण भारत में ई० पूर्व तीसरी शताब्दि तक की जिनमूर्तियॉ मिली है । ३ 1 मूर्तियों के अतिरिक्त शिलालेख पुरातत्व की एक खास चीज़ है। अजमेर प्रान्तान्तर्गत बार्लीग्राम से एक शिलालेख वीर निर्वाण से ८४ वर्ष पश्चात् का अति उपलब्ध हुआ है, जिसका उल्लेख पहले भी किया जा चुका है । यह शिलालेख यद्यपि अधूरा है, फिर भी उससे स्पष्ट है कि माध्यमिका नगरी (उदयपुर) में जिनेन्द्र महावीर की स्मृतिरूप कोई वस्तु निर्माण की गई थी । ३ उपरान्त सम्राट अशोक के लेखों में यद्यपि भ० महावीर का व्यक्तिगत उल्ल ेख नहीं है, परन्तु उनके भक्त निर्मन्थ श्रमणों का उल्लेख अवश्य है ।४ इसके अतिरिक्त कंकाली टीला के मूर्ति लेख भी दृष्टव्य है । ये प्राचीन शिलालेख भ० महावीर के अस्तित्व का महत्व स्वयं प्रगट करते हैं । प्राचीन ही नहीं, अर्वाचीन काल में भी भ० महावीर के स्मार्क -स्वरूप शिलालेख मिलते हैं । उनमे से किसी १. इम्पीरियल गैजेटियर श्रॉव इण्डिया भा० २ पृ० १६ २. जविथोरि सो० भा० ३ पृ ४६१-६८ ३. 'वीराय भगवते - घठरासी निवस्से - साला माजिणीये - रचिए 5 विद्व मज्झिमिके ।'– म०प्र०जै०स्मा० पृ० १६० ४. अशोक के धर्म लेख, पृ०
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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