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किया था: । कुछ ऐसी प्राचीन मुद्रायें ( सिक्के) भी मिली हैं, जो भ० महावीर के प्रभावको व्यक्त करती हैं । उन पर भर महावीर का सिंह चिन्ह और जैन-लक्षण अङ्कित हैं ।२ वैशाली (वसाढ ) के ध्वंशावशेषों से एक ऐसा सिक्का मिला है, जिस पर चरण-पादुकायें और श्री गौतम गणधर का नाम लिखा है ।। सारांश यह है कि भ० महावीर का कल्याणकारी सन्देश अवश्य ही सारे देश में फैला था । भ० महावीर के पश्चात् भारतवर्ष मे हुये अनेक प्रमुख राजाओं में अधिकांश जैनधर्मानुयायी थे। महाराज नन्दवर्द्धन्, चन्द्रगुप्तमौर्य, अशोक, सम्प्रति, शालिसूकमौर्य, ऐल खारवेल, विक्रमादित्य, नहपान, रुद्रसिंह अमोघवर्ष, कुमारपाल, मारसिंह आदि राजा जैनी थे। दक्षिणभारत के कदम्ब, चेर, चोल, पाण्ड्य, गंग, होयसल आदि राजवंशों मे
आदर्श लेनी शासक हुये हैं, जो लोकप्रसिद्ध थे। उनके अनेक सेनापति और दंड नायक भी जैनी थे, जैसे श्रीविजय, चामुडराय, गंगराज, हुल्ल, इरुगप्प इत्यादि । चामुंडराय ने लगभग ८४ युद्ध लड़कर विरुद पद प्राप्त किये थे। लोक प्रसिद्ध श्रवण वेलगोल की ५७ फीट ऊँची दि० लेनमूर्ति को उन्होंने ही निर्माण किया था । मेवाड़ के सच्चे भक्त वैश्यकुल दिवाकर भामाशाह भी जैनी थे, जिन्होंने राणाप्रताप की अतुल सहायता की थी और हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी तलवार का जौहर दिखाया था । इन सब बातो के उल्लेख करने का यह स्थल नहीं है। पाठकगण इस विषय का परिचय हमारे 'संक्षिप्त जैन इतिहास" नामक ग्रंथ
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१. सैनमित्र, वर्ष १२ अंक १ पृ. १६२ व मध्यप्रांव-नावपुताना
के प्रा. जैनास्मा पृ० ११० २. मम०, पृ. २१५-२० ३. बंगाल-विहार-मोडीसा प्रा. जैन स्मार्क, पृ. २०