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( २८३ ) अमर सुख का अनुभव लूटना है- मुक्ति द्वार का ताला खोलना है। धन्य है-पवित्र है वह निर्वाणधाम, जहाँ प्रभु के चरण चर्चित है । प्रिय पाठक, अवश्य ही
उधर आते पग उधार, मस्तक से नमि लेना, दर्शन कर पवित्र चरण के, स्वातम लख लेना ! है वह पावन ठौर, वहाँ है महिमा दिपती, उस सम और न ठौर, मही जहाँ सुन्दर दिखती ।।