SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६८ ) होता है कि गौतम बुद्ध के निकट मृतमास और मछली निपिद्ध और अभक्ष्य नहीं थे। वैसे बौद्ध सूत्र 'लकावतार' में अहिंना का विधान है, परन्तु वह उपरान्त का सुधार समझा जाता है। मध्यकालीन भारत में तन्त्रिक प्रभाव के वशीभूत होकर बौद्ध भिक्षु मांस-मदिरा की वासना में बह गये थे। यही कारण प्रतीत होता है कि आचार्य देवसेन बुद्धकीर्ति द्वारा मृत मछली-मांस और मदिरा सेवन का आदेश रत्ताम्वर धारण करने वाले बौद्ध भिक्षुओं को दिया गया प्रगट करते हैं। गौतमबुद्ध के क्षणिकवाद की ओर भी वह इशारा करते हैं। उस पर, यह तो स्वयं गौतम बुद्ध ने कहा है कि वृद्धत्व प्राप्त करने के पहले अपने पूर्व जीवन में उन्होंने नन्न रहने, सिर के बाल नोंचने और खड़े २ एकवार दिन में भोजन करने की क्रियाओं का अभ्यास किया था। यह क्रियाये जैन मुनिवर्या से अप्रगण्य हैं। वुद्ध जीवन में जो इस समय का वर्णन मिलता है, उसका साम्ब देवसेनजी के वर्णन से है ।२ अतएव यह निर्विवाद सिद्ध है कि म. गौतम वृद्ध एक समय दि० जैन मुनि भी रहे थे । वही नहीं, उनके प्रमुख शिष्य मौद्गलायन (मौडलायन) भी पहले श्री पार्श्वनाथ जी की तीर्थ परम्परा के साधु थे ।३ यही कारण है कि जैन और है । (VT. p. 80) उसी में नवरीक्षिा मंत्री द्वारा म० बुद्द और १२५० भिधुओं को मांस भोजन कराया लिखा है। (६ । २५ । २) page $0. 'महावग्ग (६ । ३३ ।।४) में मछली खाने का विधान हैं यदि वह भिक्षु को उद्देश्य करके न पकडो गई हो।-.p. 117 ___ Discourses of Gautama Budha (Saunder's Gautama Budha page 15). २ भमबु०, पृ० १०-१२।। ३ 'स्ट. श्री वीरनायस्थ तपस्वी मोडिलायन: ।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy