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जय वीर भगवान् महावीर
वीर-दर्शन "कः कालो मम कोऽधुना भवमहं वतै कथं सनतम् । किं कर्मात्र हितं परत्र मम किं किं मे निजं किं परम् ॥ इत्थं सर्व विचारणाविरहिता दूरीकृतात्मक्रियाः । जन्माम्भोधि विवर्तपातनपराः कुर्वन्ति सर्वाः क्रियाः ॥"
-वृहद् सामायिक पाठ । —षा वेला का सौन्दर्य मुखरित हो रहा है। सरिता के प्रवाह
की निश्चल ध्वनि वीणा के स्वरों से स्पर्धा कर रही है। पक्षी नीड़ों से निकल कर कलरवनाद करके मानो प्रकाश का स्वागत कर रहे है । वेले-लताये वक्षों से लिपटी हुई मानों प्रणय का सन्देश दे रही है। मनोहर मन्द मन्द मलयानल उनमे एक सिहरन पैदा कर रहा है । रजनी उसको देखनसकने के कारण मानो मुंह छिपाकरभाग रही है। बटोहीरास्तानापने को तत्पर हो रहे है । इस सृष्टि-सौन्दर्य मे ज्ञान का विकासपुञ्ज अद्भुत शोभा पा रहा है। एक सघन साल वृक्ष के नीचे अरुण-आभा से प्रफुल्लित वदन वह मानव ध्यान मे मग्न खड़ा है। वह किसी ओर नहीं देखता । अन्तष्टि है उसकी । कायोत्सर्ग मुद्रा मे स्थित प्रकृतिरूप में मग्न, वह योगी नासा के