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होगा जैनी ने उत्तर दिया, 'भलते हो विन! कुल और जाति की शुद्धि जिस रज-वीर्य के आधार पर मानी जाती है, उसका कोई ठिकाना नहीं । १ कौन कह सकता है कि गर्मज भ्रण ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है या शूद्र है ? वस्तुतः कुल शुद्धि अच्छे आचरण और शुभसंस्कारों पर निर्भर है। जैन धर्म संस्कार से युक्त मनुष्य मात्र को 'द्विज' बताता है २श्रावकाचार को जो भी पालता है, चाहे जन्म से और चाहे दीक्षा लेकर, वह जैनी गृहस्थ है और उनके समुदाय का नाम ही जैनकुल है। ३ इस शुद्ध श्रेष्ठ जैन कुल की मर्यादा ही पालनीय
१. न विप्रा विप्रयोरस्ति सर्वथा शुद्ध शीलता।
कालेन नादिजा गोत्रे स्खलनं क न जायते ॥ संयमो नियमः शीलं तपो दानं दमो दया। विद्यन्ते तात्विका यस्यां सा जातिमहती मता ॥'
-श्री अमितगतिः। 'अनादौ काले तस्या प्रक्षेण ग्रहीतुमशक्यत्वात् । प्रायेण प्रमदानां कामातुरतया इह जन्मन्यपि व्यभिचारोपलम्भाच कुतो योनि निबन्धनो ब्राह्मणा निश्चयः न च विप्लतेतर पित्रापत्येष वैलक्ष्यं लक्ष्यते । न खलु वडवायां गर्दभांश्च, प्रभवापत्येष्मिन् ब्राह्मण्यां ब्राह्मण शूद्रप्रभवापत्येष्वपि वैलक्षण्यं लक्ष्यते क्रियाविलोयत्॥'-श्री प्रभाचन्द्रः २ 'वर्णान्तः पातिनौ नेते मन्तव्या द्विज सत्तमाः।
व्रतमन्त्रादि संस्कार समारोपित गौरवाः ॥ विशुद्ध वृत्तयस्तस्माज्जैना वर्णोत्तमा द्विजाः । वर्णान्तः पातिवोनते जगन्मान्या इतिस्थितन ॥
-आदिपुराण ३६१४२ । ३.स
द्वितीय अध्याय श्लो० २०-५५