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लिखा है कि पांच सौ यवन ( Indo-Greeks ) भ० महावीर से शंका समाधान करने गये थे और उनके भक्त हुये थे।४ अतएव यह स्पष्ट है कि म० वुद्ध के समकालीन भ० महावीर वर्द्धमान एक ऐतिहासिक महापुरुष थे, जो जैनधर्म के संस्थापक नहीं, प्रत्युत उसके सर्व अन्तिम तीर्थकर थे । जैनधर्म उनसे वहुत पहले से प्रचलित था । भ०.महावीर के धर्मोपदेश का प्रभाव लोक व्यापी था ।
यह विश्वविभूति भारत के रत्न और विहार प्रान्त के प्राण थे-अङ्ग और मगध की जनता उनका अवतार अपने में हुआ जानकर गौरव अनुभव करती और भाग्य को सराहती थी ।६ वह सर्वज्ञ-सर्वदर्शी तीर्थकर जो थे । उनको सिद्धान्त एक विज्ञान की भाति कार्य-कारण-सूत्र पर आधारित था-इसलिये वृद्धिगम्य और ग्राह्य था-वह सत्य था । म० गौतम वुद्ध एवं अन्य मतप्रवर्तक उससे प्रभावित हुये थे। पाठक देखेंगे कि भ० महावीर ने केवल धर्म तीर्थ और एक विशिष्ट धर्म सिद्धान्त की ही स्था
4. Historical Gleanings, p. 78. 5 "Not only Jacobi, but other scholars also be
lived that jainism for from being an offshoot of Buddhism, might have been the earliest of home religions of India. The simplicity of devotion and the homely prayer of the jain without the intervention of a Brahmin would certain add to the strength of the theory so rightly upheld by jacobi. - Studies in the
Sought Indian jaintsm, pt. I p. 9. ६. मज्झिमनिकाय, मा० १ प. २