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________________ ( १०४ ) क्या करते ?" किसान इन्द्र की बात सुनकर सन्तुष्ट हुआ और पश्चाताप करता हुआ अपने घर गया । यह घटना प्रभू महा. वीर की एकान्त प्रियता और आत्मनिष्टा को व्यक्त करती है। वह ऐसे एकान्त स्थानों में जाकर ज्ञान-ध्यान का अभ्यास करते थे, जहा उन्हें कोई जानता भी न था और वहा अज्ञात कठिनाइयों को समभावों से सहन करते थे। वह यह ढिंढोरा नहीं पीटते थे कि मैं एक राजपुत्र हूं और अब वर्मचक्रवर्ती ननने जा रहा हूँ। एकान्त मौन मे रमे रहकर ही उन्होंने उस महत पद को पाया था । पाठक, एक और कथानक पढ़िये और देखिये भगवान् की कामजयी शक्ति को काम वासना का प्रकोप अति सूक्ष्म होता है-रतिभाव का आल्हाद मनुष्य हृदय में हर समय अद्वै जागत अवस्था में छुपा रहता है-निमित्त मिलते ही वह भड़कता है, और वासना का शिकार बनता है। बड़े २ योगी कामशरों से विध जाते हैं, परन्तु कामजेता महावीर इस परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुये थे। देवोत्तर मनोरम कानन में भगवान् ने एकदफा ध्यान माढ़ा था । वसन्त यौवन श्री पर थानव विकसित पल्लव पराग से सुगधित समीरण वह रहा था। प्रकृति आनन्द रूप धारण किये हुये थी। परन्तु योगिराट् महावीर अपने आत्म-कानन की ही सैर कर रहे थे। उन्हें वाह्य जगत से प्रयोजन न था-उनका ध्येय था पूर्ण वनकर लोक का कल्याण करना ! उस ध्येय से अपनी दृष्टि वह कैसे हटाते ? देवाङ्गनाओं ने उनका सुकुमार सुन्दर रूप देखा-उन्हें आश्चर्य हुआ, साक्षात् कामदेव में रति का अभाव कैसा ? दूसरे क्षण उन्होंने निश्चय किया, 'परीक्षा लें ।' वे सब की सव वहा आई और गीत-नृत्य करने लगीं। वे अपने शूगार से, हावभाव से और कोमल स्पर्श से उनको रोमाचित करना चाहती थीं।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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