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________________ मे 'मरिता' के जुलाई भ्रक को जब्त करके सरकार में एक बाद फिर अपनी सत्य परायणता का उद्घोष किया है । इसी प्रकार 'भगवान बुद्ध' सम्बन्धी विवाद पर सरकार ऐसा ही कदम उठा कर महिमा प्रेमी जनता के सामने शुद्ध न्याय का परिचय देगी । इसी से भारत प्राज गौरवान्वित हो रहा है । अन्तम साहित्य अकादमी अपने दोहरे माप दण्ड को छोड और एम साहित्य को सदैव के लिय अशान्ति जनक करार दे । उसी म भारत की प्रतिष्ठा निहत है । में इस मनोकामना के साथ प्रस्तावना को समाप्त करता हूँ । 1 सब पि सुखिन सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । मव भवाणि पश्यन्तु मा कश्चिद् पापमाचरेत ॥ म० २०१४ भा० शु० ४ बुधवार ना० २८-८-५७ देहली लेखक : मुनिदर्शन विजय * नोट यह प्रतिवाद कौशाम्बोजो की विघमानता में वि.सं. २००० ( इस्वी १९४३ ) में हमारी श्वेताम्बर - दिगम्बर- समन्वय पुस्तक प्रकाशित हो चुका है। फिर भी भारतसरकार द्वारा मान्यता सप्त साहित्य अकादमी उस विष साहित्य को पुनः प्रकाशित करके जनता के सामने रखती है। यह नीतिसगत नहीं है। - सुनि दर्शन विजय
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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