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[३६ माम फल [स्त्रीलिंग मांमामिव कोमलं फलं यम्या: ।
वया, बैंगन, भाटा -[शब्द स्तोम महानिधि], रक्त बीज,-मूंगफली-भाव प्रकाश पारिभाषक शब्द माला]
इन प्रयों से यह सिद्ध होता है कि मांस गब्द मांस का पोतक है तथा फल के गर्भ का भी घोतक है किन्तु मांसक: शब्द से तो पाक का ही बोध होता है। और यदि भगवान् महावीर के दाह-ज्वर रोग के संदर्भ में इस शब्द पर विचार किया जाय तो भी मांस का अर्थ पाक ही उचित बैठना है। देखिये - (१) स्निपर गुरु रक्तपित्तजनक पातहरं मांस।
सर्व मासंपता: सिष्यं ॥ मुर्गे का मांस ऊष्ण वोर्य है। प्रतः यहाँ माम का प्रयोग मर्वथा निषिद्ध हो माना जाता है ।
(२) प्राचीन समय में फलगर्भ और बीज के लिये क्रमशः मांस और अस्थि का प्रयोग किया जाता था। जिनागमों तथा वैद्यक ग्रंथों से इस कथन के सम्बन्ध में अनेक उदरण उपलब्ध हो सकते है जैसे
विएट स-सकलाई एपाई हन्ति एष बोबस्त ॥ टीका-पन्त सनसकहा ति-समति सनिरं तवा टाह एतानि नीति एकस्य श्रीवस्व पति-चालान एतानि नीलि भवन्तीत्वः॥
-(श्री पन्नावना सूत्र पद १ सू० २५ पृ० ३६-३७)