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[३४] विजीरा का मांस (गूदा) शीतल, वायुहर तथा पित्तहर है ।
-(सुश्रुत संहिता) ला लियापनका स्निया, मानस्य पातजित् ॥ हलं मधुरं मासं, पातपितहरं गुरु ॥ बिजीरा का मांस (गदा)-पौष्टिक, मधुर, वानहर प्रौर पित्तहर है।
(वाम्भट्ट) गोजपुरो मातुनु यो पासपूरकः ।। बीबपुरक वायु, रसे प्रल रोपनंग ॥११॥ रस्ततिहरं -बोस व सोपान । बात कामा प्रचार सप्ताहरं स्मृतम् ॥१३२॥ योगगुरो प्रल प्रोतो परो ममी । मधुकर्कटिका स्थी रोचनी शीतला गुरुः ॥१३३॥ रक्तपित्त मप यास कास हिला भमा हा ॥१४॥ विवोरासक्ति नामक है, कच्छजिव्हा-हदय शोषक है, श्वास कास तथापिका मन करता है व तम्बाहर है। मा विजोत पीतल तथा रक्तपित नासक है।
-भाव प्रकार मिण्टु फल वर्ग ) मुर्नेकन मांस उन्मवीर्य है। यह वह को बढ़ाने वाला है।
-(पुट संहिता) उक्त बातों को दृष्टि में रसपर विसार किया वाय तो यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि वहाँ रोग निवारणार्थ मुर्गे का प्रयोग युक्ति संगत नहीं है तवा स्पिति के सर्वचा प्रतिकूल