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[१]
शब्द समूह का प्रयोग भी सार्थक हो जाता है । प्रत: इस बात को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि यहां कवोय शब्द का किसी प्राणी (पक्षी) के लिये नहीं वरन् फल के लिये प्रयोग किया गया है । यह बात दुवे शब्द से सिद्ध हो जाती है । प्रतः इस स्थान पर दुवे शब्द महत्वपूर्ण है ।
(२) कोय
कवोय एक प्रकार की खाद्य वनस्पति है । यह पूरी की पूरी उपष्कृत हो सकती है घोर बहुत समय तक टिक सकती है । इसके सेवन से ऊष्णता, पित्तज्वर, रक्तविकार तथा प्रामातिसार प्रादि रोग शांत होते हैं । कवय का संस्कृत पर्याय 'कपोत' है । कपोत प्रौर कपोत से निर्मित शब्दों में अर्थ - वैभिन्य होता है जो निम्न व्यौरे से भलि भांति प्रकट हो जायेगा । कोत = एक प्रकार की वनस्पति ( सुश्रुत संहिता) । कपोत = पारापतः कलरवः, कपोत, कमेडा, कबूतर । कपोत = पारीस पीपर ( वैद्यक शब्द सिन्धु ) ।
कपोत = कुष्मांड, सफेद कुम्हेडा, भुरा कोला । कपोती वृत्ति = सादा जीवन निर्वाह ।
कापोती = कृष्ण कापोती, श्वेत कापोती, वनस्पति (सुश्रुत संहिता) श्वेत कपोती समूलपत्रा भक्षयितव्या [सुभुत सं० प्र० ८२१] सक्षीत रोमशां मुवर्ती रसेने रसोपमाम् । एवं रूप रसाम् चापि कृष्णा कपोति माविशेत् ॥ कौशिक सरितं तीर्त्वा संजयानयास्तु पूर्वतः । शिति प्रदेशी बाल्मिके राचितो योजन प्रयम् । विज्ञेया तंत्र कापोति श्वेता वाल्मिक मुर्धतु ॥ [कापोति प्राप्ति स्थान सुत]