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________________ [१२] केवल यहो नहीं, अहिंमा शब्द मात्र का सामान्य वातां में प्रयोग होना ही जैन धर्म की पोर ध्यान प्राकर्षित करने के लिये पर्याप्त है। यह तथ्य भगवान महावीर के अहिंसामय जीवन का ज्वलंत प्रमाण है। भगवान महावीर की वाणी में मांसाहार का सर्वथा निषेध है, जिसके कई पाठ निम्न है : (१) से मिल्नु पा० नाव समारों से जं पुरण जाणेग्या मंसाइयं वा छाया सन बामधलं पामो अभिसंधारिक गमगाए । (पाचारांग सूत्र, निशिय सूत्र ) जैन भिक्षुक को यदि कही माम, मछली अथवा उसके छिलके-काट प्रादि होने का पता लग जाय तो वह वहाँ न जाये। (२) समजामसासिरणे ॥ (सूत्र, कृतांग सूत्र प० २) जैन साधु मांस-मदिरा का त्याग करें । (1) ये पावी भूगन्ति तहप्पगार, सेवन्ति ते पाबमजाणमारणा, मलंग एपं कुसलं करतो पायाबि एसा बुईगाउ मिया । (सूत्र हतांग सूत्र भूत०-२० ६ गा० ३८) जो मांस-मदिरा का सेवन करते है, प्रज्ञानता से पाप करते हैं, उनका मन अपवित्र है पौर वचन भी झूठा है। (४) महारंभयाए परिहियाए, कुरिणमाहारण पंवेनिय बहेणं मेरावारण कम्मासरी राप्पयोग नामाए कम्मरम उपएणं नरापारण कम्मा सरीरे बाब पयोग बम्। (बो भगवती सूत्र १० ८३०६०) जीव चार प्रकार के कामों से नरक में जाने के लिये कर्म बांधते है । वह है-(१) महापाप का पारम्भ ; (२) महा परि
SR No.010163
Book TitleBhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherBhikhabhai Kothari
Publication Year1957
Total Pages49
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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