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[१] काकास्यः काकमाची च काकोली काकणन्तिका । काकजंघा काकनासा काकोदुम्मारिकापि च ॥२॥ सप्तस्वयेंषु कथितः काकशब्दो विचक्षणः । ॥२॥ सपी पंच, सीसके नागकेसरे ।। नागवल्यां नागदन्त्यां नागशब्दश्च युज्यते ॥३॥
रसो नव वर्तते ॥४॥ चन्द्रलेखा = बकुचो इश्वरम् = पित्तल प्रश्वकर्ण = ईसबगोल फणी = श्वेनचन्दन पातालनृप = सीसा लक्ष्मी = लोहा हरि = गुलाल पुरुष = गुगल माद्री = प्रतीस नागार्जुनी = दुढी,कह बहुपुत्रा - यवासा राक्षसी = राई शवसुधा = शतावर मुकुन्द = कुन्दर कुमारी = घीगुवार महाबला - सहदेई सकारि = कचनार रक्तबीज - मूगफली मुड - सरकंडा लागली - कलिहारी तरुण = एरण्ड चंडालिनी = लहसुन उरग = मोसा कृष्णबीज = कालादाना ताम्रकूट = तमाखू
[बम्बई पुस्तक एजन्सी, कलकत्ता से प्रकाशित-साहित्य शास्त्री पं० रामतेज पाण्डेय कृत टिप्पणी युक्त, पं. भावमिश्रका भाव प्रकाशनिषष्ट : प्रथमा वृत्ति-वि० स० १९९२ ]
३. वर्तमान काल के भनेकार्थ शब्द माज कल के भी कई प्रचलित शब्द ऐसे है जिनका पर्व, प्राणी पार वनस्पति के प्रसंग में प्रयोग होने पर, विभिन्न हो जाता है। जैसे :