________________
[३] उक्त मौषष के लिये प्राकृत भाषा में इस प्रकार लिखा है:___ तत्व रेवती ए गाहावइसीए, मम बहाए दुवे कबोय सगरा उवखडिया, तेहिं नो अट्ठो । अस्थि से भन्ने पारियासिए मज्जार कड़ए इमरमंसए तमा
--भगवती पत्र पन्द्रहवां शतक । इस पाठ के प्रत्येक शब्द की व्याख्या की जायेगी। किन्तु इस मम्बन्ध में यह स्पष्ट कर देना प्रावश्यक है कि २५०० वर्ष पूर्व भगवान् महावीर द्वारा भाषित मागधी-प्राकृत के इन शब्दों के अर्थ या भावार्थ को अनेक प्रकार मे संस्कारित स्वकालीन प्रचलित भाषा के शब्दों का पर्याय बना लिया जाय तो यह सरासर भूल है । ऐमो भूल से बचने के लिये प्रारम्भ में निम्न बातों का ज्ञान होना प्रावश्यक है।
(१) जैन सूत्रों की रचना और प्रर्थ-पद्धति, (२) प्राकृत और संस्कृत के अनेकार्य शब्द, (३) वर्तमान काल के कुछ प्रनेकार्थ शब्द, (४) प्रोषध सेवन करने वाले और जुटाने वाले का
जीवन संस्कार, (५) प्रौषध प्रदान करने वाली स्त्री का व्यवहारिक
जीवन; (६) रोग, मोषध पौर नियमा नियम का विज्ञान ।