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________________ आदर्श परिवार की संकल्पना और महावीर • डॉ० कुसुमलता जैन v..v vvvvvvvm.u.........vvvvvvvvvvvvvvvvvv................~ ~~~- ~ub. व्यष्टि और समष्टि के मंगल-प्रणेता : तीर्थंकर महावीर का व्यक्तित्व वह प्रकाणपुञ्ज है, जो शताब्दियों से व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व को ज्योतिर्मय कर मंगलमय जोवन के लिये अनुप्रेरित कर रहा है। राजभवन का वैभव उन्हें प्राकर्पित न कर सका, तीन वर्ष की अवस्था में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। द्वादश वर्षों की दीर्घ-साधना के उपरान्त परमात्मतत्व की उपलब्धि हेतु मंगल उपदेश दिया, निवृत्ति-मूलक श्रमण संस्कृति को पल्लवित किया, श्रमण संस्कृति में जीव के चरमलक्ष्य की दृष्टि से मुनि धर्म की प्राणप्रतिष्ठा की गई है, तथापि गृहस्थ धर्म को अग्राह्य नहीं समझा गया है, अतः तीर्थकर, महावीर और आदर्श परिवार दो विरोधी आयाम नहीं हैं । भगवान् महावीर के सिद्धान्त आदर्श परिवार के निर्माण में भी उतने ही सहयोगी हैं, जितने कि जीव को निर्वाणप्राप्ति में । आत्म-कल्याण के महान् साधक तीर्थकर महावीर ने लोकमंगल के लिये अनवरत विहार किया और अपने वचनामृतों से विश्व को प्राप्लावित किया, अतएव वे व्यप्टि और समष्टि के मंगल भविष्य के प्रणेता के रूप में स्मृत किये जाते हैं। परिवार : व्यक्तियों का लघुतम समवाय : __ व्यक्तियों की इकाई की संयुक्ति से परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है। परिवार व्यक्तियों का लघुतम समवाय है। आदर्श परिवार वह परिवार है, जिसके सदस्यों में पारस्परिक स्नेह और सद्भावना विद्यमान हो । प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्य के प्रति त्याग भावना और उसकी उन्नति की कामना रखता हो । परिवार की प्रतिष्ठा की उपलब्धि में सहयोग करना प्रत्येक व्यक्ति अपना कर्तव्य समझे। परिवार में प्रगति के योगदान की इस प्रवृत्ति को विदायक वृत्ति कह सकते हैं । परिवार के सदस्यों का मद्य, मांस, मवु तथा अभक्ष्य के सेवन से बचना, आचरण विशुद्ध रखना तथा वैवानिक सामाजिक मर्यादा में रहकर जीवन व्यतीत करना निषेधात्मक वृत्ति है । समाज और राष्ट्र के अभ्युदय में यथाशक्य सहयोग प्रदान करना आदर्श परिवार का कर्तव्य है। उक्त गुरगों से युक्त परिवार आदर्श परिवार है। भगवान् महावीर पुल्पार्थ मूलक संस्कृति के आदर्श हैं, उनके दिव्य सन्देश नैतिक अभ्युथान के कीर्ति-स्तम्भ हैं। आदर्श परिवार के निर्माण में भगवान महावीर की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी लोकमंगल के निर्माण में ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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