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________________ जीवन, व्यक्तित्व और विचार मानव-मानव में भी एक गहरी भेद रेखा खींचदी गई थी। कुछ मनुष्य ईश्वर के प्रतिनिधि वन गये, कुछ उनके दलाल और बाकी सब उन ईश्वरीय एजेंटों के उपासक । ब्राह्मण चाहे कैसा भी हो, वह पूज्य और गुरु है, शूद्र चाहे कितना भी सहिष्णु - सेवापरायण एवं धर्ममय जीवन जीने वाला हो, उसे धर्म साधना करने और शास्त्रज्ञान प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं । यह मानव-सत्ता का अवमूल्यन था, मानव शक्ति का अपमान था । ३० भगवान् महावीर ने सबसे पहले मानव-सत्ता का पुनर्मूल्यांकन स्थापित किया । उन्होंने कहा-ईश्वर नाम का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो मनुष्य पर शासन करता हो, मनुष्य ईश्वर का दास या सेवक नहीं है, किन्तु अपने आपका स्वामी है । उन्होंने कहा'अप्पा कत्ता विकताय दुहारण य सुहारगय' fu 'उत्तराध्ययन सूत्र' अपने सुख एवं दुःख का करने वाला यह ग्रात्मा स्वयं है । आत्मा का अपना स्वतन्त्र मूल्य है, वह किसी के हाथ विका हुआ नहीं है, वह चाहे तो अपने लिए नरक का कूट शाल्मली वृक्ष ( भयंकर कांटेदार विप वृक्ष) भी उगा सकता है अथवा स्वर्ग का नन्दनवन और ग्रशोक वृक्ष भी । स्वर्ग नरक आत्मा के हाथ में है— आत्मा अपना स्वयं स्वामी है । प्रत्येक आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है । ग्रात्मा सत्ता की स्वतन्त्रता का यह उद्घोप मानवीय मूल्यों की नवस्थापना था, मानव सत्ता की महत्ता का स्पष्ट स्वीकार था । इस श्राघोप ने मनुष्य को सत्कर्म के लिए, पुरुषार्थ के लिए प्रेरित किया । ईश्वरीय दासता से मुक्त किया । और बन्धनों से मुक्त होने की चावी उसी के हाथ में सौंप दी गई— 'aeप्पमोक्खो अजत्येव' - आचारांग सूत्र १५२ बंधन और मोक्ष - श्रात्मा के अपने ही भीतर है । समानता का सिद्धान्त : मानव सत्ता की महत्ता स्थापित होने पर यह सिद्धान्त भी स्वयं पुष्ट हो गया कि मानव चाहे पुरुष हो या स्त्री, ब्राह्मण हो या शूद्र - धर्म की दृष्टि से, मानवीय दृष्टि से उसमें कोई अन्तर नहीं है । जाति और जन्म से अपनी अभिजात्यता या श्रेष्ठता मानना मात्र एक दंभ है । जाति से कोई भी विशिष्ट या हीन नहीं'न दीस ई जाइ विसेस कोई -उत्तराध्ययन सूत्र उन्होंने कहा— ब्राह्मण कौन ? कुल विशेप में पैदा होने वाला ब्राह्मण नहीं, किन्तु 'बंभ चेरेण वंभरणो' (उत्तराध्ययन) ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला ब्राह्मण होता है । यह जातिवाद पर गहरी चोट थी । जाति को जन्म के स्थान पर कर्म से मानकर भगवान् महावीर ने पुरानी जड़ मान्यतात्रों को तोड़ा । कम्मुरणा वंभरणा होई, कम्मुरगा होई खत्तियो । वसो कम्मुरगा होई, सुद्दो हवइ कम्मुरणा ||
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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