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आत्मजयो महावीर • प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
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जीवन्त प्रेरणा के स्रोत :
जिन तपःपूत महात्माओं पर भारतवर्ष उचित गर्व कर सकता है, जिनके महान् उपदेश हजारों वर्ष की कालावधि को चीर कर आज भी जीवन्त प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, उनमें भगवान् महावीर अग्रगण्य हैं। उनके पुण्य स्मरण से हम निश्चित रूप से गौरवान्वित होते हैं।
याज से ढाई हजार वर्ष पहले भी इस देश में विभिन्न श्रेणी की मानव मण्डलियां बसती थीं। उनमें कितनी ही विकसित सभ्यता से सम्पन्न थीं। बहुत सी अर्द्ध-विकसित और अविकसित सभ्यतायें साथ-साथ जी रही थीं। आज भी उस अवस्था में बहुत अन्तर नहीं पाया है, पर महावीर के काल में विश्वासों और प्राचारों की विसंगतियां बहुत जटिल थीं और उनमें आदिम प्रवृत्तियां बहुत अधिक थीं। इस परिस्थिति में सबको उत्तम लक्ष्य की ओर प्रेरित करने का काम बहुत कठिन है। किसी के प्राचार और विश्वास को तर्क से गलत सावित कर देना, किसी उत्तम लक्ष्य तक जाने का साधन नहीं हो सकता क्योंकि उससे अनावश्यक कटुता और क्षोभ पैदा होता है ।
हर प्रकार के प्राचार-विचार का समर्थन करना और भी बुरा होता है, उससे गलत बातों का अनुचित समर्थन होता है और अन्ततोगत्वा अव्यवस्था और अनास्था का वातावरण उत्पन्न होता है । खंडन-मंडन द्वारा दिग्विजयी बनने का प्रयास इस देश में कम प्रचलित नहीं था, पर इससे कोई विशेप लाभ कभी नहीं हुआ। प्रतिद्वन्द्वी खेमे और भी आग्रह के साथ अपनी-अपनी टेक पर अड़ जाते हैं । इस देश के विसंगतिवहुल समाज को ठीक रास्ते पर ले आने के लिए जिन महात्माओं ने गहराई में देखने का प्रयास किया है उन्होंने दो बातों पर विशेष बल दिया है । मन, वचन, कर्म पर संयम :
पहली बात तो यह है कि केवल वाणी द्वारा उपदेश या कथनी कभी उचित लक्ष्य तक नहीं ले जाती। उसके लिए आवश्यक है कि वाणी द्वारा कुछ भी कहने के पहले वक्ता का चरित्र शुद्ध हो । उसका मन निर्मल होना चाहिये, आचरण पवित्र होना चाहिए। जिसने मन, वचन और कर्म को संयत रखना नहीं सीखा, इनमें परस्पर अविरुद्ध रहने की साधना नहीं की, वह जो कुछ भी कहेगा अप्रभावी होगा।