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परिचर्चा
५. साम्यवाद व ग्राध्यात्म का सुव्यवस्थित सामन्जस्य भगवान् महावीर की विचारधारा में स्पष्ट है । व्यक्ति, समाज व राष्ट्र का रूपान्तरण व विकास जीवन व सृष्टि के सर्वागोरण पक्षों को लेकर अधिक संभाव्य है । विश्व में सीमित भौतिक साधनों को देखते हुए, जैन धर्म अधिक व्यवहारगत प्रतीत होता है । प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया के सामाजिक व मनोवैज्ञानिक प्रभावों ने जीवन में निराशा की भावना को भर दिया है । कुण्ठाओं व ग्लानियों से त्रस्त मानव पलायनतावादी होता जा रहा है । भीड़-भाड़ के वर्तमान जीवन में व्यक्ति का अकेलापन उसे जीवन के प्रति निर्मोही बना, अनास्था में फेंक देता है । श्रतः समकालीन समाज में महावीर के संदेश की अधिक सार्थकता है । यह व्यक्ति को जीवन में महत् उद्देश्य दिखाकर, उसकी आन्तरिक क्षमतायों का स्वदर्शन व बोध कराता है ।
(१०) डॉ० नरपतचन्द सिंघवी
१. भगवान् महावीर ने वही कहा जो उन्हें प्रत्यक्ष था । उन्होंने ग्रनुभूत सत्य को वारणी दी, जीवन और जगत् से सम्बन्धित नये मूल्यों की प्रतिष्ठा की । उनके चिन्तन के मुख्य विन्दु हैं—
• यह दृश्य और ग्रदृश्य जगत् स्वयंमेव निर्मित है, इसे किसी ईश्वर ने नही
बनाया ।
भोक्ता भी स्वयं ही
• व्यक्ति ग्रपने कर्मों का कर्त्ता स्वयं है, उनके परिणामों का है । अपने कल्याण के लिए उसे स्वयं ही प्रयत्न करने होंगे । जीव अनन्त शक्तिमान है । उसमें अपने गुणों का विकास स्वयं कर परमात्मा बन जाने की क्षमता है । भगवान् महावीर के अवतारवाद के निषेध के पीछे जीव के स्वतंत्र स्तित्व और उसके व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा का सिद्धान्त है ।
• सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र्य मोक्ष के कारण हैं । सम्यक् चारित्र्य जीवन की एक समग्र ग्राचार-संहिता है, सामाजिक जीवन की धुरी है । आचार के पहले विचार क्रांति जीवन के लिए नितान्त आवश्यक है, इसके लिए महावीर के अनेकान्त का चिन्तन दिया |
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अनेकान्त भगवान् महावीर के चिन्तन की आधार शिला है । प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है । वस्तु में ये अनन्त धर्म परस्पर सापेक्ष भाव से सदैव विद्यमान रहते हैं । अनेकान्त मूलक विचार के लिए स्याद्वाद की भापा आवश्यक है ।
पांच व्रत—१. अहिंसा, २. सत्य, ३. अस्तेय, ४. ब्रह्मचर्य, ५. अपरिग्रह - जीवन की चार-संहिता के ग्राधार स्तंभ है । साधु या मुनि के लिए इन्हीं व्रतों का महाव्रत के रूप मे पालन करना आवश्यक है । गृहस्थ इन्हें प्रव्रतों के रूप में पालन करता है । सुसंस्कृत एवं सुव्यवस्थित सामाजिक जीवन के लिए अणुव्रत श्राधार भूमि है । सम्पूर्ण मनुष्य जाति एक है । गुव्रती समाज में वर्ग भेट नही