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परिचर्चा :
भगवान् महावीर ने अपने समय में जिन मूल्यों को प्रतिष्ठापित किया, वे आज भी उतने ही ताजे और प्रभावकारी लगते हैं । २५०० वर्षो की सुदीर्घ कालावधि में भगवान् महावीर का तत्त्व- चिन्तन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से दार्शनिकों, अर्थशास्त्रियों, राजनीतिक विचारकों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों को किसी न किसी ग्रंश में प्रभावित करता रहा है । समाजवादी अर्थ-व्यवस्था, ग्रात्म-स्वातंत्र्य, सापेक्षवादी चिन्तन, जनतन्त्रात्मक सामाजिक चेतना, शोषण विमुक्त ग्रहिंसक समाज रचना, स्वावलम्बी जीवन-पद्धति जैसे जीवन-मूल्यों के विकासवादी चिन्तन में महावीर की विचारधारा प्रेरक कारक रही है ।
यह सही है कि ग्राज हमारे रहन-सहन और चिन्तन के तौर-तरीकों में पर्याप्त अन्तर या गया है फिर भी महावीर के विचारों में वह क्रांति तत्त्व विद्यमान है जो हमें अपनी चेतना और परिवेश के प्रति सजग बनाये रखता है । उसके विभिन्न श्रायामों की मूल्यात्मक संवीक्षा करने की दृष्टि से हमने विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत विद्वानों के समक्ष निम्नलिखित ५ प्रश्न प्रस्तुत किये। उनसे जो उत्तर प्राप्त हुए, वे प्रश्नानुक्रम से यहां प्रस्तुत हैं
:
भगवान् महावीर द्वारा प्रतिष्ठापित मूल्य : कितने प्रेरक ! कितने सार्थक !!
• डॉ० नरेन्द्र भानावत
विचार के लिए प्रस्तुत प्रश्न :
१.
- भगवान् महावीर अपने समय में जिन मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने के लिए संघर्ष रत रहे या श्रमरण धर्म की साधना के पथ पर अग्रसर हुए, वे मूल्य क्या थे ? भगवान महावीर को हुए ग्राज़ २५०० वर्ष हो गये हैं । क्या इस सुदीर्घ कालावधि में हम उन मूल्यों को प्रतिष्ठापित कर पाये हैं ? यदि हां तो किस रूप में और यदि नहीं तो क्यों ?
२.
३.
४.
ग्रापकी दृष्टि से मार्क्स, गांधी, आइन्स्टीन, सार्त्र आदि चिन्तकों की विचारधारा और महावीर के तत्त्व - चिन्तन में किस सीमा तक किस रूप में समानता है ?
आज के बदलते संदर्भों में समाज की नव रचना में महावीर की विचारधारा किस प्रकार व किन-किन क्षेत्रों में सहायक वन सकती है ?