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भाषानों का प्रश्न : महावीर का दृष्टिकोण.. नेहरू की सम्मति थी कि - कम से कम आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं, जैसे हिन्दी, गुजराती, बंगला, उड़िया, गुरुमुखी व उर्दू आदि को देवनागरी लिपि में लिखा जाए और द्रविड़ भाषाओं के लिए एक लिपि अपनाई जाए । पर भाषाओं के मोह के समान लिपियों का मोह या भूत भी हमारे देशवासियों के सिर पर सवार है । वे भूतकाल में चलते हैं, आगामी भविष्य-लम्वे भविष्य में विचरना नहीं चाहते । कुछ नेता रोमन लिपि' को थोपने का प्रयत्न करते हैं। चीन में भारत से ज्यादा जनसंख्या-सत्तर करोड़ है, वहां भाषाएं भी भारत से अधिक हैं । पर उनके यहां जो चित्र लिपि है, उसके कारण पढ़ने लिखने वालों को कोई कठिनाई नहीं होती। वैसे अव वहां भी रोमन लिपि को अपनाया जा रहा है। लिपि सुधार की दिशा में बहुत काम होने की जरूरत है। प्राचार्य विनोबा भावे देवनागरी लिपि में सुधार करने व सब भाषाओं में उसे अपनाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं, पर अब वे इतने वृद्ध हो गए हैं कि विचार देने के सिवाय वे सक्रिय रूप से कुछ करने में असमर्थ हैं। उनके विचार को अमली रूप देने के लिए भाषा प्रचारकों के दल टीमें) चाहिए।
अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध व भाषा:
' आज हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध इतने बढ़ गए हैं कि सभी देशों से हमारे व्यापारिक, राजनीतिक, राजनयिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध व समझौते हैं । अंग्रेजी शासन काल में यहां अंग्रेजी से काम चलता था, आज वह भी है । पर आज हमारे विद्वानों को जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, लातीनी, अरवी, फारसी, चीनी व जापानी भाषाएं आदि भी सीखनी पड़ रही हैं : संयुक्त राष्ट्र संघ में अंग्रेजी, फ्रांसीसी, रूसी, स्पेनिशं और चीनी भाषाओं में काम होता है । वहां अनुवाद की ऐसी व्यवस्था है कि एक भाषा के भाषाण का अनुवाद साथ-साथ अन्य चारों भाषांतों में होता रहता है । यह टेक्नोलाजी का चमत्कार है । यद्यपि संसार का आधा पत्र-व्यवहार अंग्रेजी में होता है, पर विज्ञान, शिल्प विज्ञान के अनुसंधान सम्बन्धी लेख, प्रबन्ध, परिपत्र, आदि अंग्रेजी के अतिरिक्त जर्मन, रूसी व. फ्रांसीसी में होते हैं । आज शिल्प विज्ञान आदि अन्तर्राष्ट्रीय विषय बन गए हैं। इसलिए विदेशी भाषाओं का अध्ययन भी आवश्यक है ।। :.::.:.
:. : भाषाविजन को मन
... ::: - भाषा विज्ञान एक तुलनात्मक विषय है। योरोपीय भाषाओं का एक परिवार है, जिसमें संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रश, पुरानी ईरानी, यूनानी, लातीनी, आदि पुरानी भाषाओं और अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, नई ईरानी, पश्तो, हिन्दी, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, कश्मीरी, सिन्धी, उडिया, असमिया व राजस्थानी आदि भाषाएं हैं। इनमें शब्दों की बहुत साम्यता है। भाषा विज्ञान, भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के विना आगे नहीं वढ़ सकता और आज तो. 'संसार के सभी देशों के शब्द सभी भाषाओं में पहुंच रहे हैं। मानों, शब्दों का अन्तर्राष्ट्रीय बैंक हो, और उसमें संव: अपनी अपनी भापानों के शब्द जमा कराते रहते हैं. और आवश्यकतानुसार उसमें से लेते रहते हैं। शब्दों में वर्णविपर्यय अर्थात्
वर्णो में हेरफेर, स्थान परिवर्तन, लोप, आगमनः आदि होता रहता हैं, उनकी ध्वनियां . . बदलती रहती हैं। यही उनका विकास है। इतना ही नहीं, उनके अर्थ भी बदलते रहते
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