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आधुनिक युग और भगवान् महावीर
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द्वारा हो रही है। दुनिया ने स्वार्थी लड़ाइयां बहुत देखी हैं उनके निवारण के लिए एटम बम बनाये किन्तु आज उसी एटम बम से दुनिया त्रस्त है । सुख का उपाय एटम बम नहीं किन्तु बांट कर खाना--यही है । यही समभाव की विजय है। दुनिया माने या न माने इसी समभाव के रास्ते पर चलने के सिवा कोई चारा नहीं। अहिंसा की पूर्णता विश्व-वात्सल्य में :
अहिंसा का सन्देश भगवान महावीर ने दिया उसका तात्पर्य विश्व-वात्सल्य से है। यदि विश्व-वात्सल्य में अहिंसा भाव परिणत नहीं होता है तो वह अहिंसा की पूर्णता नहीं है। मनुष्य शत्रुओं को अपने वाहर खोजता है । वस्तुतः शत्रु की खोज अपने भीतर होनी चाहिए । भगवान् महावीर ने कहा है कि 'अरे जीव बाहर शत्रु क्यों खोजता है वह तो तेरे भीतर ही है ।' राग और द्वीप ये ही बड़े शत्रु हैं-यदि इनका निराकरण किया तो कल कोई भी शत्रु दीखेगा नहीं। इस वीतराग भाव की भी सिद्धि तब ही हो सकती है जव मनुप्य अन्तर्मुखी हो । विज्ञान ने बाहर बहुत कुछ देख लिया किन्तु मनुष्य या राग-द्वेप की समस्या का वह हल नहीं कर सका । परिग्रह का सा भाव वह जुटा सकता है किन्तु उचित बंटवारा तो मनुप्य के स्वभाव पर आधारित है और यदि वही नहीं बदला तो परिग्रह का ढेर लग जाय तब भी वह सुखी नहीं हो सकता । सुखी तो वह तव ही होगा जब वह वस्तुतः अपने भीतरी राग-द्वेप का निराकरण करके विश्व वत्सल बनेगा । दुनिया में विज्ञान ने बहुत कुछ प्रगति कर ली। किन्तु भीतर नहीं देखा । परिणाम स्पष्ट है-अनेक विश्व युद्ध हुए इन सबके निवारण का उपाय अन्तर-जगत् की शोध है और उसका रास्ता भगवान् महावीर ने बताया है।
मनुप्य-स्वभाव की स्वतन्त्रता है तो विचार-भेद अनिवार्य है। विचार-भेद को लेकर मतभेद किया जा सकता है किन्तु मन भेद तो नहीं होना चाहिए । मतभेद होते हुए भी भावात्मक एकता का नारा अाज बुलन्द किया जाता है क्योंकि दुनिया में कई राजनीतिक प्रणालियां चलती हैं । अतएव सब प्रणालियां अपने-अपने क्षेत्र में चलें, एक दूसरे का विरोध न करें इस प्रकार की भावात्मक एकता का स्वीकार, नाना प्रणाली की सहस्थिति शक्य है और अनिवार्य है ऐसी भावना राजनैतिकों में बढ़ रही है। किन्तु आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने विरोधी मतों के समन्वय का मार्ग वैचारिक अहिंसा अर्थात् अनेकान्तवाद उपस्थित किया था, वह आज हमें भावात्मक एकता कहो या सहस्थिति कहो-उस रूप में उपयोगी सिद्ध हो रहा है। अतएव इस समन्वय के सिद्धान्त को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यदि मानव समाज लागू करता है तो उसका कल्याण ही नहीं विश्व मैत्री भी सिद्ध की जा सकती है ।