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आधुनिक परिस्थितियाँ एवं भगवान् महावीर का संदेश
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इसी वल जहां जहां पहचान हुई, मैने वह ठांव छोड़ दी, ममता ने तरिणी-तीर और मोड़ावह डोर मैने तोड़ दी।
-अज्ञय
आर्थिक अनिश्चयात्मकता, अराजकता, आत्मग्लानि. व्यक्तिवादी यात्म विद्रोह, जीवन की लक्ष्यहीन समाप्ति आदि प्रवृत्तियों से बाज का युग ग्रसित है । कोटि-कोटि जन जिन्हें युगों-युगों से समस्त मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया है वे आज भाग्यवाद एवं नियतिवाद के सहारे मौन होकर बैठ जाना नहीं चाहते प्रत्युत सम्पूर्ण व्यवस्था पर हथौड़ा चलाकर उसे नष्ट-भ्रष्ट कर देना चाहते है ।
अस्तित्ववादी चिन्तन :
__ परम्परागत जीवन-मूल्यों को सायास तीड़ने की उद्देश्यगत समानता के होते हुए भी भगवान महावीर के पूर्ववर्ती एवं समसामयिक प्रक्रियावादी चिन्तन एवं आधुनिक अस्तित्ववादी चिन्तन में बहुत अन्तर है । अस्तित्ववादी चिन्तन ने मानव-व्यक्ति के संकल्प स्वातन्त्र्य; व्यक्तित्व निर्माण के लिए स्व प्रयत्लों एवं कमंगत महत्त्व का प्रतिपादन, कर्मों के प्रति पूर्ण दायित्व की भावना तथा व्यक्तित्व की विलक्षणता, गरिमा एवं श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है । यह चिन्तन "सारसत्ता" (Essence) और "अस्तित्त्व" (Existence) को अलग अर्थों में प्रयुक्त करता है । सारसत्ता प्रकृति का निश्चित प्राकारयुक्त प्रयोजनशील निष्क्रिय तत्त्व है और अस्तित्त्व चेतनासम्पन्न क्रियाशील अनिश्चित तत्त्व है जो सृष्टि में मानव मात्र में ही परिलक्षित होता है । अस्तित्त्व सम्पन्न मानव अपने ऐतिहासिक विकास के अनिर्दिष्ट, अज्ञेय मार्ग को मापता चलता है । सृष्टि की यह चेतन सत्ता अपने चिन्तन एवं निर्णय के लिए पूर्ण स्वतन्त्र है
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मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ लेकिन मुझे फेंको मत
..................... . . इतिहासों की सामूहिक गति सहसा झूठी पड़ जाने परक्या जाने
। सचाई टूटे हुए पहिये का आश्रय ले ।
-धर्मवीर भारती
इस प्रकार आज का जीवन-दर्शन खंडित, पीड़ित होते हुए भी अकर्मण्य एवं भाग्य