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आधुनिक परिस्थितियाँ एवं भगवान् महावीर का संदेश • डॉ० महावीर सरन जैन
बौद्धिक कोलाहल का युग :
भगवान महावीर के युग पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि वह युग भी आज के युग की भांति अत्यंत वौद्धिक कोलाहल का युग था । हमारा श्राज का युग अध्यात्म, धर्म, मोक्ष प्रादि पारलौकिक चिन्तन के प्रति विरक्त ही नहीं, अनास्थावान भी है ।
भगवान महावीर के युग में भी भौतिकवादी एवं संशयमूलक जीवन दर्शन के मतानुयायी चितकों ने समस्त धार्मिक मान्यताग्रों, चिर संचित आस्था एवं विश्वास के प्रति प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया था। पूरणकस्सप, मक्खलि गोशालक, अजित केशकम्बलि, पकुध कच्चायन, संजय बेलट्ठपुत्त आदि के विचारों को पढ़ने पर हमको आभास होता है कि 'युग के जन-मानस को संशय, त्रास, श्रविश्वास, अनास्था, प्रश्नाकुलतां श्रादि वृत्तियों ने किस सीमा तक श्राद्ध कर लिया था। पूरण कस्सप एवं पकुध कच्चायन दोनों प्राचार्यो ने आत्मा की स्थिति तो स्वीकार की थी किन्तु 'प्रक्रियावादी' दर्शन का प्रतिपादन करने के कारण इन्होंने सामाजिक जीवन में पाप-पुण्य की सभी रेखायें मिटाकर अनाचार एवं हिंसा के वीजों का वपन किया । पूरण कस्सप प्रचारित कर रहे थे कि श्रात्मा कोई क्रिया नहीं करती, शरीर करता है और इस कारण किसी भी प्रकार की क्रिया करने से न पाप होता है न पुण्य । पकुध कच्चायन ने बताया कि (१) पृथ्वी (२) जल (३) तेज (४) वायु (५) सुख (६) दुःख एवं (७) जीवन - ये सात पदार्थ प्रकृत, अनिर्मित, अवध्य, कूटस्थ एवं अचल हैं । इस मान्यता के आधार पर वे यह स्थापना कर रहे थे कि जब ये अवश्य हैं तो कोई हंता नहीं हो सकता । "यदि तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा किसी को काट भी दिया जावे तो भी वह किसी को प्रारण से मारना नहीं कहा जा सकता ।" अजितकेस कुंवलि पुनर्जन्मवाद पर प्रहार कर ग्रास्तिकवाद को झूठा ठहरा रहे थे तथा भौतिकवादी विचारधारा का निरूपण करने के लिए इस सिद्धान्त की स्थापना कर रहे थे कि "मूर्ख और पंडित सभी शरीर के नष्ट होते ही उच्छेद को प्राप्त हो जाते हैं । "
भगवान महावीर के समकालिक प्राचार्य मंखलि गोशालक की परम्परा को आजीक या प्रजीविक कहा गया है । 'मंझिमनिकाय' में इनकी जीवन-दृष्टि को 'ग्रहेतुकदिट्ठि'