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मानसिक स्वास्थ्य के लिए महावीर ने यह कहा
• श्री यज्ञदत्त अक्षय
पहला सुख निरोगी काया :
संसार में सभी सुख चाहते हैं । और सभी जानते हैं कि 'पहला सुख निरोगी काया'। शरीर स्वास्थ्य के विना अन्य किसी भी प्रकार का सुख प्राप्त करना सम्भव नहीं । अस्वस्थ व्यक्ति को न अच्छा खाने का मजा मिलता है न अच्छा पहनने का । वह न संगीत का अानंद अनुभव कर सकता है न रूप, रस, गंध का । अस्वस्थ दशा में आनंदानुभव की शक्तियां एक प्रकार से कुंठित हो जाती हैं। इसलिए 'एक तंदुरुस्ती हजार नियामत है।' शरीर रोगी होने पर किसी काम या वात में मन नहीं लगता, मन उखड़ा-उखड़ा सा रहता है। इससे सिद्ध है कि शरीर की स्वस्थ या अस्वस्थ दशा का मन पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मितभोगी को स्वस्थता, अति भोगी को रोग :
__ मन की सही-गलत दशाओं का इन्द्रियों पर, तन पर, सही-गलत प्रभाव पड़ता है। पहले मन मे कोई विचार आता है, शरीर और इन्द्रियां तद्नुकूल कार्य करती हैं, उसका अच्छा या बुरा प्रभाव मन पर पड़ता है । मन मिठाई खाने को ललचाता है, तब उसके कहे अनुसार व्यवस्था करता है, मिठाई खाई जाती है, जीभ को अच्छी लगती है। जीभ उस स्वाद को और चाहती है । मन या तो कहता है कि कोई हर्ज नहीं, और अधिक मिठाई खाली जाती है तो उस अति के फलस्वरूप शरीर में विकार एकत्र होते और रोग पनपते एवं उभड़ते हैं या मन कहता है कि बस इतना यथेष्ट है, अति नहीं। मितभोगी को स्वस्थता, अतिभोगी को रोग । इस संयम के फलस्वरूप स्वस्थता बनी रहती है। अतः शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक रवास्थ्य परस्पर पूरक है । बल्कि यों कहना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य शरीर स्वास्थ्य की कुञ्जी है स्वस्थ मन तन को स्वास्थ्य की दिशा में अग्रसर करता रहता है और स्वस्थ तन मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाता रहता है। सौमनस्य की आवश्यकता : दक्षिण भारत के विद्वान प्राकृतिक चिकित्सक श्री कृ० लक्ष्मण शर्मा ने लिखा है
अतः सुस्वास्थ्य सिद्धयर्थ सौमनस्याम् अपेक्षते । मनसि प्रतिकूलेतु, सन्मार्गात् प्रच्युति वा ।