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आधुनिक विज्ञान और द्रव्य विषयक जैन धारणा
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धन विद्युत् (Positive Charge + ) और ऋण विद्य त् (Negative Charge -) के अस्तित्व को स्वीकार किया है। यहां पर स्पष्ट रूप से ऐसा लगता है कि जैन विचारकों ने आधुनिक विज्ञान द्वारा वताए गए परमाणु स्वभाव को ठीक उसी प्रकार निष्पन्न किया था जो आधुनिक विज्ञान हजारों वर्ष बाद कर रहा है। श्री वी० एल० शील का भी यही मत है कि जैन दर्शनविद् इस तथ्य को पूरी तरह जानते थे कि धन और ऋण विद्यु तकणों के मिलन से विद्य त् की उत्पत्ति होती है ।' श्राकाश में चमकने वाली विद्युत् का हेतु भी परमाणुओं का रूक्षत्व और स्निग्धत्व गुण है-यह तथ्य भी 'सर्वार्थ सिद्धि', अध्याय ५ में प्राप्त है। प्राणी तथा वनस्पति जगत में भी धन और ऋण विद्युत् का रूप यौन-पाकर्षण में देखा जा सकता है, यहां तक कि वनस्पति संसार में भी यह आकर्पण एवं विर्षण प्राप्त होता है। धन और ऋण का यह अनंत विस्तार सृष्टि में व्याप्त है और यहां पर आकर जैन चिंतक की वैज्ञानिकता का प्रमाण मिलता है ।
परमाणु के स्पर्श गुण और विज्ञान :
जैन दर्शन में परमाणुओं के अनेक 'स्पर्श' माने गए हैं जो प्रत्यक्षतः परमाणुओं के गुरण तथा स्वभाव को स्पष्ट करता है । इन्हें 'स्पर्श' इसलिए कहा गया है कि इन्द्रियां इन्हें अनुभूत करती हैं। इन स्पों की संख्या पाठ हैं जैसे कर्कश, मृदु, लघु, गुरु, शील, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष । इस प्रकार के विभिन्न गुण वाले परमाणुनों के संश्लेष से उल्का, मेघ, इंद्रधनुप आदि का सृजन होता है जिसे हम प्राकृतिक घटना (Phenomenon) कहते हैं । आधुनिक भौतिकी भी इसी तथ्य को स्वीकार करती है कि उल्का, मेघ तथा इन्द्रधनुष परमाणुओं का एक विशिष्ट संघात है। यही नहीं, छाया, पातप, शब्द तथा अंधकार को भी पुद्गल का रूप माना गया है जो आधुनिक विज्ञान में भी मान्य है। जैनाचार्यों ने पुद्गल के ध्वनिरूप परिणाम को 'शब्द' कहा है । परमाणु अशब्द है, शब्द नाना स्कंधों के संघर्ष से उत्पन्न होता है। यही कारण है कि ध्वनि का स्वरूप कंपनयुक्त (Vibration) होता है और इस दशा में ध्वनि, शब्द का रूप ग्रहण कर लेती है । आधुनिक भौतिकी के अनुसार भी यह एक सामान्य अनुभव है कि ध्वनि का उद्गम कंपन की दशा में होता है। उदाहरणार्थ शंकु का कांटा (स्वर यंत्र), घण्टी, पियानो के तार, पारगन पाइप की हवा-ये सब वस्तुएं कंपन की अवस्था में रहती हैं जवकि वे ध्वनि पैदा करती हैं ।'३ विज्ञान के अनुसार शब्द एक
१. पाजिटिव साइंस ऑफ एन्सेंट हिन्दूज, वी० एल० शील, पृ० ३६ । २. जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान, पृ० ६५ । 3. It is a common experience that a source of sound is in a state of
vibration. For example the prong of a tuning fork, a bell, the strings of a piano and the air in an organ pipe are all in a state of vibration when they are producing sound.
--Text book of Physics, R. S. Willows, P. 249.