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समाज में इस चिन्तन-क्रम को वल मिले, इसी भावना के साथ यह ग्रंथ पाठकों के हाथों में सौंपते हुए मुझे प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है ।
ग्रंथ के प्रणयन-प्रकाशन में विद्वान् लेखकों और ग्र० भा० साधुमार्गी जैन संघ के अधिकारियों ने जिस तत्परता और अपनत्व के साथ सहयोग दिया तदर्थ में उन सबके प्रति हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ । आशा है, आगे भी उनसे इसी प्रकार का सहयोग मिलता रहेगा ।
सी-२३५ ए, तिलकनगर जयपुर-४