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गुट निरपेक्षता का सिद्धान्त और महावीर का अनेकांत दृष्टिकोण
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की अपेक्षा से यह अनन्त है, क्योंकि लोक द्रव्य के पर्याय अनन्त हैं। काल की दृष्टि से लोक अनन्त है अर्थात् शाश्वत हैं, क्योंकि ऐसा कोई काल नहीं, जिस में लोक का अस्तित्व न हो, किन्तु क्षेत्र की दृष्टि से लोक शान्त है, क्योंकि सकल क्षेत्र में से कुछ ही लोक हैं, अन्यत्र नहीं। यह अनेकांतवाद का ही चमत्कार है कि लोक को शान्त मानने वाले ओर अनन्त मानने वाले हठी चिन्तकों के सामने तार्किकतापूर्ण ढंग से लोक को शान्त और अनन्त दोनों सिद्ध करके, उनका समन्यव सम्भव हुआ।"
वस्तुतः इस उद्धरण में आए हुए ‘सान्त' और 'अनन्त' शब्दों को लेकर ही इस चिन्तन प्रणाली का नाम 'अनेकान्तवाद' पड़ा। इसके अनुसार किसी भी सत्य का एक ही अन्त नहीं है, अनन्त अपेक्षा भेदों से उसके अनन्त अन्त होते हैं। अनेकान्तवादी भाव को मूचित करने के लिए भगवान महावीर ने वाक्यों में 'स्यात्' शब्द का प्रयोग किया है। इसीलिए अनेकान्तवाद 'स्याद्ववाद' के नाम से भी प्रसिद्ध हुया है। वस्तुत: 'स्याद्ववाद' अनेकान्तवादी चिन्तन की अभिव्यक्ति की शैली का नाम है । अनेकान्त चिन्तन के प्रेरणा-सूत्र :
भगवान महावीर का यह अनेकान्तवाद मुख्य रूप से हमें तीन बातों की प्रेरणा देता है
(क) कोई भी मत या सिद्धान्त पूर्णतः सत्य या असत्य नहीं है, अर्थात् सिद्धान्तों के प्रति दुराग्रह नहीं होना चाहिए।
(ख) विरोधियों द्वारा गृहीत और मान्य सत्य भी सत्य है इसलिए, उस सत्य का अपने जीवन में उपयोग न करते हुए भी उसके प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिए। इस प्रकार से विरोधियों के सत्य में भी हमारे लिए सृजनशील सम्भावनाएं निहित मिलेंगी, अन्यथा, विरोधियों के सत्य के प्रति हमारा उपेक्षाभाव विध्वंसक भावों को जन्म देगा।
(ग) मनुप्य का ज्ञान अपूर्ण है और ऐसा कोई एक मार्ग नहीं है, जिस पर चलकर एक ही व्यक्ति सत्य के सभी पक्षों की जानकारी प्राप्त कर सके । अतः सत्य के लिए कथित अन्य मार्ग भी उतने ही श्रेष्ठ हैं, जितना हमारा अपना मार्ग । इस सत्य को स्वीकार कर लेने पर हमारे ज्ञान की अभिवृद्धि होती रहेगी और हमारे चिन्तन के द्वार अवरुद्ध नहीं होंगे।
गुट निरपेक्षता में अनेकान्त को समाहिति :
गुट निरपेक्षता में उपर्युक्त तीनों बातें किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं, यथा
(क) जिस प्रकार अनेकान्तवाद किसी एक ही चिन्तन के प्रति दुराग्रही नहीं है, उसी प्रकार गुट निरपेक्षता में भी आग्रह शून्य होकर अपनी राष्ट्रीय नीतियों की स्वीकृति के साथ विभिन्न गुटों की नीतियों के ग्राह्य सत्य को स्वीकार लिया जाता है और अग्राह्य नीतियों को विना आलोचना किए हुए ही छोड़ दिया जाता है।
(ख) जिस प्रकार अनेकान्तवाद विरोधियों के सत्य के प्रति सम्मान का भाव रखने हुए उसे 'मत्य' के रूप में स्वीकार करता है, उसी प्रकार गुट निरपेक्षता में भी गटों की