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प्रकाशकीय
भगवान् महावीर के २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव पर, श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ की ओर से यह प्रकाशन करते हुए हमें बड़ी प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । भगवान् महावीर ने अपने समय में सब जीवों के प्रति मैत्री-भाव, दूसरों के विचारों के प्रति आदर-भाव, आत्मा की स्वाधीनता, वृत्तियों का संयमन, आवश्यकता से अधिक संचय न करने का व्रत जैसे लोकहितवाही आत्मनिष्ठ मूल्यों की प्रतिष्ठापना की थी। बदलती हुई परिस्थितियों में उनके द्वारा प्रस्थापित ये मूल्य आज अधिक प्रासंगिक और अर्थवान बन गए हैं। वर्तमान मनीषा का चिन्तम इस ओर अधिकाधिक केन्द्रित होता जा रहा है।
आज विश्व आर्थिक संकट के साथ-साथ सांस्कृतिक और चारित्रिक संकट से ग्रस्त है। चारों ओर हिंसा, शोपण, उत्पीड़न, दुराग्रह, हउवादिता का भयावह वातावरण है । अणुयुग में पहुंच कर भी आज का मानव सच्ची शांति नहीं प्राप्त कर सका है। उसे चाह
और ललक है इसे प्राप्त करने की । पर यह प्राप्ति बहिर्जगत् की यात्रा से संभव नही । इसके लिए उसे अन्तर्जगत् की यात्रा करनी होगी। इस यात्रा के विभिन्न पड़ावों को इन प्रकाशनों के माध्यम से रेखांकित करने का प्रयत्न किया गया है।
श्री अ० भा० साधुमार्गी जैन संघ ने अपने जयपुर अधिवेशन (अक्टूबर, १९७२) में डॉ. नरेन्द्र भानावत के साथ विचार-विमर्श कर, साहित्य-प्रकाशन की एक योजना स्वीकृत की । उसी योजना के अन्तर्गत भगवान् महावीर के २५००वें परिनिर्वाण वर्ष में डॉ. भानावत के ही संयोजन-संपादन में निम्नलिखित चार ग्रन्थ प्रकाशित किये जा रहे हैं
१. Lord Mahavir & His Times
• By Dr. K.C. Jain २. भगवान् महावीर : अपने समय में
• मूल लेखक डॉ. के० सी० जैन • अनुवादक डॉ. मनोहरलाल दलाल Lord Mahavir & His Relevance in Contemporary Age • Edited by : Dr. Narendra Bhanawat,
Dr. Prem Suman Jain ४. भगवान् महावीर : आधुनिक संदर्भ में • सं० डॉ. नरेन्द्र भानावत,
डॉ. शान्ता भानावत