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भगवान् महावीर की दृष्टि में नारी
भद्रासन प्रदान करना चाहिए क्योंकि जैनागमों में पत्नी को 'धम्मसहाया' अर्थात् धर्म की सहायिका माना गया है ।
वासना, विकार और कर्मजाल को काट कर मोक्ष प्राप्ति के दोनों ही समान भाव से अधिकारी हैं। इसी प्रकार समवसरण, उपदेश, सभा, धार्मिक पर्वों में नारियां निस्संकोच भाग लेगी । मध्य सभा के खुले रूप में प्रश्न पूछ कर अपने संशयों का समाधान कर सकती हैं । ऐसे अवसरों पर उन्हें अपमानित व तिरस्कृत नहीं किया जाएगा ।
दासी प्रथा का विरोध :
उन्होंने दासी प्रथा, स्त्रियों का व्यापार और क्रय-विक्रय रोका । महावीर ने अपने बाल्यकाल में कई प्रकार की दासियों जैसे धाय, क्रीतदासी, कुलदासी, ज्ञातिदासी आदि की सेवा प्राप्त की थी व उनके जीवन से भी परिचित थे । इस प्रथा का प्रचलन न केवल सुविधा की खातिर था, बल्कि दासियां रखना वैभव व प्रतिष्ठा की ...निशानी समझा जाता था । जब मेघकुमार की सेवा-सुश्रुषा के लिए नाना देशों से दासियों का क्रय-विक्रय हुआ तो महावीर ने खुलकर विरोध किया और धर्म सभात्रों में इसके विरुद्ध आवाज बुलन्द की ।
वौद्ध ग्रामों के अनुसार आम्रपाली वैशाली गणराज्य की प्रधान नगरवधू थी । राजगृह के नैगम नरेश ने भी सालवती नामक सुन्दरी कन्या को गणिका रखा। इसका जनता पर कुप्रभाव पड़ा और सामान्य जनता की प्रवृत्ति इसी ओर झुक गई । फलस्वरूप गणिकाएं एक ओर तो पनपने लगी, दूसरी ओर नारी वर्ग निन्दनीय होता गया ।
भिक्षुणी का श्रादर :
जब महावीर ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की तो उसमें राजघराने की महिलाओं के साथ दासियों व गणिकाओं वेश्याओं को भी पूरे सम्मान के साथ दीक्षा देने का विधान रखा । दूसरे शब्दों में महावीर के जीवन काल में जो स्त्री गणिका, वैश्या, दासी के रूप में पुरुष वर्ग द्वारा हेय दृष्टि से देखी जाती थी, भिक्षुणी संघ में दीक्षित हो जाने के पश्चात् वही स्त्री समाज की दृष्टि में वन्दनीय हो जाती थी....। नारी के प्रति पुरुष का यह विचार परिवर्तन युग पुरुप महावीर की ही देन है ।
भगवान् बुद्ध ने भी भिक्षुणी संघ की स्थापना की थी, परन्तु स्वयंमेव नहीं । श्रानन्द के आग्रह से और गौतमी पर अनुग्रह करके । पर भगवान् महावीर ने समय की मांग समझ कर पम्परागत मान्यताओं को बदलने के ठोस उद्देश्य से संघ की स्थापना की । जैन शासन सत्ता की बागडोर भिक्षु भिक्षुणी, श्रावक-श्राविका इस चतुर्विध रूप में विकेन्द्रित कर तथा पूर्ववर्ती परम्परा को व्यवस्थित कर महावीर ने दुहरा कार्य किया ।
इस संघ में कुल चौदह हंजार भिक्षु, तथा छत्तीस हजार भिक्षुणियां थीं । एक लाख उनसठ हजार श्रावक और तीन लाख अट्ठारह हजार श्राविकाएं थी । भिक्षु संघ का नेतृत्व इन्द्रभूति के हाथों में था तो भिक्षुरणी संघ का नेतृत्व राजकुमारी चन्दनबाला के - हाथ में था ।