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________________ भगवान कुन्दकुन्दाचार्य। चार्यने, जिन्होंने प्रवचनसारकी टीकाकी समाप्तिका समय स्वयं विक्रम संवत् १३३९ दिया है, पंचास्तिकायकी टीकाके आरम्भमें मूल कर्ता श्री कुन्दकुन्दाचार्यका दूसरा नाम पद्मनन्दि भी लिखा है। ईसाकी बारहवीं तथा विक्रमकी तेरहवीं शताब्दिके शिलालेखोंमें इनका नाम स्पष्टत: पद्मनन्दि दिया है, जिससे विदित होता है कि द्राविड़ देशीय कौण्डकुन्दपुर इनका निवासस्थान होनेकी अपेक्षासे यह कुन्दकुन्दाचार्य प्रसिद्ध, हुये। उदाहरणरूप देखिये शिलालेख नं० ४० तथा ४२, जो आगे “ विदेहगमन " शीर्षकमें उद्धृत हैं। यद्यपि इन शिलालिखित पट्टावलियोंका रचना काल ईसाकी १५ वीं शताब्दिसे पूर्वका निश्चित नहीं है तो भी उनका बहुतसा भाग प्राचीन माना जासकता है। और जबतक कोई विरोधी समर्थ प्रमाण बाधक न हो, तद्वर्णित कोई विषय सहसा अविश्वसनीय कहा देना न्यायसंगत नहीं। अतः यह मान लेनेमें कोई आपत्ति नहीं कि. इन आचार्यवरका जन्म नाम या दीक्षा समयका गुरुप्रदत्त नाम पद्मनंदि है । नन्द्यान्त होनेके कारण जन्मनामकी अपेक्षा, नन्दिसंघके गुरु द्वारा दिया हुआ यह इनका दीक्षित नाम अधिक संभावित है। ३-एलाचार्य । छिचकाहन सोडोके शिलालेखमें एक एलाचार्यका वर्णन है जो देशीयगण और पुस्तकगच्छसे सम्बद्ध थे। परन्तु इन आचार्यवरसे इनका कोई सम्पर्क नहीं पाया जाता। , 'धवला टीकामें जो उसके प्रणेता वीरसेनाचार्यने प्रशस्ति दी है, उससे ज्ञात होता है कि ग्रंथकार महोदयने एलाचार्यसे सिद्धान्त सम्बंधी
SR No.010161
Book TitleBhagavana Kundakundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholanath Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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