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मंगलाचरण ।
आदि सुमंगल उचित है, अन्त निरापद हेतु । सो बन्दूं आरम्भ में, आदिनाथ गुण केतु ॥ १ ॥ प्रणम् गौतम गणपती, ज्ञान गेह गुणराश । जिन्ह भापी जिन दिव्यध्वनि, कीनो धर्मप्रकाश ॥ २ ॥ सर्वाक्षेप निवारिणी, श्री जिन धर्मस्तूप | स्याद्वाद वाणी नमू, सप्त भंग नय रूप ॥ ३ ॥ कुन्दकुन्द आचार्यको, नमों त्रियोग समार । जिनको शुभ चारित्र है, नाथ लेख आधार ॥ ४ ॥ मंगलीक मंगल करण, मंगल रूप विचार | नाथ कथं मुनिवर कथा, मंगल पद दातार || ५॥
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