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हमे सहायता तो मिल सकेगी। . क्या बुराई है प्राधीनता मान लेने में? . लडेगे। और अनेक मारे जायेंगे फिर भी हम जीत नही पायेगे। ..जीत भी नहीं पायेंगे और भरत महाराज को दृष्टि से भी गिर
जायेगे। ...तव आयीनता मान ही लेनी चाहिए।
इस प्रकार स्वय सोच कर, मत्रियो, सेनापतियो से मत्रणा कर अनेक राजा प्रसन्नतापूर्वक भरत महाराज के समक्ष सिर झुकाए या जाते और आधीनता मान लेते।
बहुत से ऐसे भी राजा महाराजा थे जो अपनी हैकड मे मरे जा रहे थे वे कहते-हमारे विचार अटल है। वे दूत की बात भी नही मानते । फल यह होता कि फिर युद्ध ठन जाता और वह हैंकड जताने वाला राजा हार मानकर सिर झुका देता।
सेना दक्षिण की तरफ विजय का उका बजाती हुई आगे बढती ही जा रही थी। जब किनारा आ गया और आगे समुद्र दिखाई पड़ने लगा तो भरतने अादेश दिया कि सेना विश्राम कर लें।
दक्षिण के चोल, पाण्डय, केरल आदि देशो को आधीन करने के पश्चात् अाज विशाल मेना विश्राम कर रही थी।
विशाल मडप मे सिंहासन पर महाराजा भरत गौरव के साथ विराजे हुये थे । अनेक राजा महाराजा मामने, वाये वाये बैठे हुए थे। शान्ति एव सुरक्षा की व्यवस्था सोती जा रही थी। समझाई जा रही थी।
राजा महाराजानो ने भरत महाराज की पूजा की। अनेक बहुमूल्य भेट भी अर्पित की । अनेक रूपवती, गुणवती, कन्याएं भी परणाई।
विश्राम के समय मे नृत्य, गीत हुए। सैनिको के लिये विशेष मनोरजन का प्रायोजन किया गया । विशाल मडप के विशाल द्वार