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भगवान आदिनाथ
(प्रमुख)
आदिनाथ कहो या ऋषभदेव कहो। दोनो नाम एक ही हैं। ऋषभदेव के विषय मे ऋगवेद मे तथा पुराणो मे पुष्कल विचार सामग्री उपलब्ध होती है । श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार महाराज नाभि के यहा मरूदेवी की कुक्षी से स्वय विष्णु ने अवतार ग्रहण किया था । श्रमरण मुनियों के धर्मों का निर्देश करना उनके इस अवतार का मुख्य प्रयोजन था । यथा- 'बर्हिषि तत्मिनेव विष्णुदत्त | भगवान् परमर्षिभिः प्रसादित्त नाभे प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मेरुदेव्यां धर्मान् दर्शमित कामो वात्तरशताना श्रमणानामृषीणामुध्वंमन्थिना शक्लयातनुरवत तार 1, श्रीमद् भागवत महापुराण, ५/३/२०'
ब्रह्माण्डपुराण में प्रियव्रत को चराावली का उल्लेख करते हुए कमश प्रियव्रत से प्राग्नीघ्र, आग्नीध से नाभि, और नाभि से क. भ की उत्पत्ति का वर्णन किया है । वही यह उल्लेख भी हुआ हैं कि ऋषभ समस्त क्षत्रियो के पूर्वज है उनके सो पुत्र हैं, जिनमे भरत ज्येष्ठ (बडे ) हैं । यथा
'प्राग्नीध ज्येष्ठदायाद काम्यापुत्र महावलम् । प्रियव्रतोऽभ्यसिचत् त जम्बूद्वीपेश्वर नृपम् ॥ तत्यपत्रा बभ्रुवुर्हि प्रजापति सभा नव । ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तम्य किं पुरुषोऽनुज. नामेनिसर्ग वक्ष्यामि हिमा ऽस्मिन्नि दोषत | नाभिस्त वजनयत् पुत्र मत्देव्या महाप्युतिम् ॥ पार्थिवश्रेष्ठ सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् । मृषभाद् भरतो पक्षो वीर पुत्रशता ॥ -ब्रह्माण्ड पुराण, पूर्व २/१४