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पाठक वन्द
दो शब्द ..
महान् आत्माग्रो की विशेषतायें क्या थी? वै क्या, जन्म से ही
(*
महान् आत्मा होती है ? उन्होंने ऐसा क्या कार्य किया - जिससे वे महान् आत्मा बन गई ? क्या हम भी महान् श्रात्मा बन सकते हैं ? प्रादि प्रश्न एक आध्यात्मिक सुखशान्ति के हेतु आवश्यक प्रश्न है।
प्रस्तुत पुस्तक मे आपको उपरोक्त सभी प्रश्नो का सहज, सरल और निष्पक्ष उत्तर मिलेगा । श्राध्यात्मिकरस, भौतिक वादियो के लिये एक कडवी दवा होती है । परन्तु यहाँ वही कडवी दवा मीठे मीठे बतासे मे रख कर पिलाई जा रही है ।
उपन्यास, लेख, निबन्ध सभी ज्ञान की वृद्धि के कारण भूत तथ्य होते है | पर अनैतिकता के पोषक लेख उनको दूषित बना देते हैं । श्रत जीवन मे नैतिकता को प्राथमिकता देते हुये उत्कृष्ट लेख ही पढना योग्य है ।
इसी तथ्य की पुष्टी के लिए आपके कर कमलो में यह पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है । आशा है कि इसका अध्ययन करके शाति का प्रास्वादन करेंगे।
( रानीमिल मेरठ )
विनीत
प० वसतकुमार जन शास्त्री (शिवाड - राजस्थान )
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