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'क्यो कि अव आदिनाथ जी ने हमे जो अपना लिया है।' 'आप कौन है ? 'हम कौन है ? सुनोगे--एक-एक का परिचय ?' 'हा । हा ! जरूर सुनू गा।
'तो सुनो यह है सुमति महारानी जी । और आप है विवेक राजा जी। इनसे मिलिए 'आप है शान्ति देवी जी । पौर आप हैं - वैराग्य चन्द जी। ..."
'और बाप कौन है ? 'मैं ?. 'मैं मैं' रत्न त्रयिका ।' 'मै समझा नहीं।' 'तुम समझ भी नहीं सकते। 'क्यो ?'
'क्यो कि जिस दिन तुम मुझको समझ जानोगे उसी दिन तुम्हारा अस्तित्त्व ही समाप्त हो जाएगा। फिर तुम ससार की भोली-भाली यात्मा को यो रुला नहीं सकती। यो भटका नहीं सकती।' ___ 'चलो यो ही रहने दो कि मैं समझू गा नही पर आपका परिचय सुनने मे भी क्या एतराज है।'
कोई ऐतराज नहीं । • लो सुनलो - सम्यकदर्शन सम्यक ज्ञान, और सम्यक चरित्र से रची पची जीवन में सुगन्धि भर देने वाली और प्रात्मा को तुम जैसे तु खारो से बचाने वाली मैं 'रत्नायिका' है। जिस भी प्रात्मा ने मुझे अपना या तो समझलो उसने ही कल्याण पथ पालिया ।' । __'यह तो तुम्हारा प्रकार है।'
'सहकार नही मोह राजाजी। यह वास्तविक्ता है। और तुम जैसे कायरो को कह देने वाली सत्यता है।'