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पीछे फिर कर देखा तो माथा ठोक लिया। चिल्लाकर बोला
'अरे कमवस्तो। भाग क्यो गए। 'नहीं । नहीं। मालिक हम नहीं थाने के।'
क्यो??? 'हमे तो पहले ही लताड मिल चुकी है।' 'कसी लताड ? ? ? • कव???
'जव इन्होने सासारिक गठवाठ छोडा था तभी हमे तो निकाल दिया गया था । अब जब पापही इन्हें दूर से देखकर ठिठक गए तो आप हमारी क्या सहायता कर सकते हैं? ___ 'अरे ।।। • 'मोह तिल मिला उठा । वह कुछ हिम्मत करके आगे बढा और बढता ही गया । ज्यो ही वह आदिनाथ के पास जाने लगा या कि...."
'ठहरो । कहा जाते हो।' 'आदिनाथ के पास ।' मोह ने हिचकिचाते हुए कहा । 'कौन हो तुम?' 'मैं मै. मुझे 'मोह-राजा' कहते हैं।" 'ओह । तो श्राप है मोह राजा जी।' 'जी हा । मुझे ही मोह राजा जी कहते है।' 'क्यो आये हो यहा ?'
'अरे।।। मै तो इनके साथ सदैव से रहा है। कभी भी मैंने इनका साथ नही छोडा । ये भी मुझे सदैव साथ रखते रहे है। .. आप जाकर आदिनाथ जी कहे तो सही कि--आपसे 'मोह राजा' मिलना चाह रहा है।
'भोले राजा । कहा सोये थे इतने समय से ? जानो ? भाग जानो यहा से । अव यहा तुम्हे आश्रय नहीं मिल सकेगा।'
'क्यो?