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"यही कि अब वे मोह मे नही पड़ने के।" "क्यो"
"किससे मोह करे ? तुमने देखा या सुना नहीं कि अप्सरा नाचती नाचती ही मर गई ?"
"तो इससे क्या हुआ ?"
"अरे जब स्वर्ग की अप्सरा को ही अपनी मृत्यु का मालूम नही, जव वही अपने आपको मौत से न बचा सकी तो भला मानव का क्या ठिकाना ?"
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"चौकता क्या है ? आयु तो एक दिन सभी को समाप्त होनी ही है । तब क्यो न अपना और परकाहित कर लिया जाय ।" ___ "बात तो कुछ अच्छी सी ही है।"
"अच्छी सी ही नही श्रेष्ठ भी उत्तम भी और योग्य भी है। अाज भगवान दीक्षा लेगे। फिर तप करेगे? फिर ज्ञान की उपलब्धि करके हम जैसे अन्पज्ञो को ज्ञान देंगे।"
प्रादि । ओदि । उधर पीछे-पीछे यशस्वती और सुनन्दा रानी ऐसी लग रही थी जैसे मानो लताये मुरझा गई हो। नेत्रो से अपलक आँसुप्रो की झड़ी लग रही थी। रो भी रही थी और हृदय की पुकार भी सुन रही थी। हृदय कह रहा था--यो रोकर अमगल मत करो। धैर्य रखो और सयम से काम लो। आज तुम्हारे पति, परमेश्वर बनने जा रहे है । ' उनके लिए मुस्कान के पुष्प बरसानो-पासुनो से राह में कीचड मत करो।" ___ जिस उपवन मे भगवान आदि नाथ जाना चाह रहे थे वह अयोध्या के बहुत दूर था । अत जनसमूह साथ न दे सका। स्त्रिया थककर चूर हो गई। पैर लडखडाने लगे। बाल बिखर गये और वस्त्र सम्हाले भी सम्हलने नहीं लगे।