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का उत्सव हो रहा था ।
एक ओर नृत्य, गान हो रहा था तो दूसरी और वैराग्यवर्धक ज्ञान की देशना हो रही थी ।
यशलती और सुनन्दा रानिया हस भी रही थी और हृदय बैठा भी जा रहा था । ग्राज उनके पुत्र को नाम्राज्य पद दिया गया है और आज ही पति से उनका विछोह हो रहा है । क्या करें वे दोनो " हल भी नही सकती तो से भी नही सकती । अयोध्या का कोना कोन नाच भी रहा था और आहे भी भर रहा या ।
क्यो ???
क्योकि सृष्टि के सृजनहार भगवान आदिनाथ आज उनके बीच से जा रहे थे। जगल का वास करने को, अपने आप मे रमते को । मोह की जजीर को तोड रहे थे । वैराग्य-उपवन के आध्यात्मिक पुप्पो को गप ले रहे थे ।
मणिचित पालकी मे ग्रादिनाम विराजमान हुए । पालकी को मानवो ने और स्वर्ग के देवो ने उठायी। जय जय कार हो उठा । पुष्प बरस पड़े प्रोर जनममूह उन यही आवाजें आ रही थी ।
पडा । सभी ओर से
"प्राज भगवान कहा जा रहे हैं " महलो में क्यो नही रहते ?" 'क्या दुखाइको महनों मे २" "रही ""तुम सम हो।" ? ही नहीं ग
गया है
राज्य ना
! तो नहीं हो गया है ?
"
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