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में तो यापका पुन
कीजिये
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( २७ )
| eat पालने वाला पुत्र
कि
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'देखो
मैं जानता हू
पुन
धर्मतीर्थ की स्थापना
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करोगे । दीक्षा लेकर मानव कल्याण की भूमिका स्थापित करोगे । पर जब तक वह काल लब्धि न ग्राजाय तब तक तुम्हें इन प्रवोध 'मानव समाज को ग्राहस्थ्य परम्परा बतानी ही होगी । तुम श्रादि पुरुष हो | इसलिये आपके कार्यों को देखकर अन्य लोग भी ऐसी ही प्रवृत्ति करेंगे ।'
तुम
प्राज्ञा
'आप तो महान ज्ञानी हे वास्तविकता प्रकट कीजिये ।' 'पुन वृषभ । परम्पराये प्रकट करने के लिये तुम्हे विवाह करना चाहिये ! यह जो अनर्गल मिलाप - अवोध व अनविज्ञ प्राणियों में याज हो रहा है उसे पवित्रता के रंग मे रगना चाहिये ?”
'जैमी श्रापकी आज्ञा " युवक वृषभ ने पिता-नाभिराज की श्राज्ञा 'ओम्' कहकर स्वीकृत की ।
वृषभ देव की स्वीकारता पाने पर राजा नाभि प्रसन्नता से नाच उठे । श्रव वे कन्या की खोज में लग गये। मेरे ऐसे योग्य, कामदेव पुत्र के लिये - शीलवान रति समान कन्या चाहिये ।
कच्छ और महाकच्छ की दो कन्याये प्रति सुरूपा, सुडोल एव विचक्षण बुद्धि की थी । राजा नाभि ने इन दोनो कन्याओं के साथ पुत्र वृषभ का विवाह सम्पन्न कराया ।
आज अयोध्या इस प्रकार सज रही थी कि मानो कोई नवनवेली दुल्हन सज-धज कर अपने पिया से मिलने श्रातुर हो रही हो । रानी मरदेवी के तो पैर घरती पर लग ही नही रहे थे। अपने पुत्र की दो वधु को देख-देखकर श्रानन्द के सागर मे प्रसन्नता से फूली गोते लगा रही थी।
द्वार-द्वार पर मंगल गान हो रहे थे। कामिनियाँ सजधज कर