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बारहवे मरुदेव तेरहवे प्रसेनजित और रात मे चौदहवें कुलकर नाभिराज हुये । नाभिराज के समय मे पुत्र प्रसव पर होने वाले मल आदि का प्रादुर्भाव होने लगा था । इन चौदहवे कुलकर के समय मे मानव और भी पीडित था । अनविज्ञ एव प्रबोध था । जनसख्या भी विशेष हो चुकी थी। आवास, खानपान, पहनपहनाव, बोलचाल, रक्षा, शिक्षा आदि का अभाव हो रहा था।
जैसा मिला जहां मिला खालिया । जहाँ जगह मिली पड गये । सर्दी, गर्मी, सहते रहे । असभ्य वातावरण पनपने लगा । ऐसे समय मे भगवान वृषभदेव का जन्म हुआ ।