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स्वर्ग से अवतीर्ण होगा। नागेन्द्र का भवन देसने से अवधि ज्ञा का धारी होगा, चमकते हुए रत्नो की राशि देखने से गुणो व भण्डार होगा। निर्धूम अग्नि देखने से मोक्ष का अधिकारी होगा और · 'हाँ ! हाँ । स्वामिन-कहिये । कहिये । और क्या'..?"
'और जो तुमने अपने मुख मे प्रवेश करते हुये वृषभ को देख है ना?
'हा | हाँ । देखा है।'
'तो समझ लो कि भगवान ऋपभदेव ने तुम्हारे गर्भ मे शरीर धारण कर लिया है।'
'मोह ! - रानी मरूदेवी, प्रसन्नता, मोद, और उमग रे भरी नाच उठी। आज उसे सारा ससार नाचता हुआ, गात हुआ दिखाई दे रहा था । वह अपने ही मोद-विचारो मे खोई ज रही थी 'मै 'भगवान ऋषभ देव की मां बनू गी? ." जिसक सारा ससार पूजा करेगा, जिसको तीनो लोको का साम्राज्य प्रा होगा, जो समस्त प्राणियो का हितकारी होगा क्या मैं उनक मा बनू गी ।-प्रोह । मैं धन्य हूँ। मैं तो धन्य हूँ', ___क्यो ? क्या विचार रही हो " राजा नाभि ने अपनी रान को मुख छवि को देखकर जान लिया कि यह अपनी भावी सन्ता की खुशी मे मोदभरी उडान ले रही है। ___ 'रोह | कुछ नहीं कुछ भी तो नहीं ।..."
तभी दासियो ने निवेदन किया भोजन का समय हो ग महारानी जी।'
महाराज नाभि और महारानी मरूदेवी ने भोजन कक्ष प्रवेश किया । आज रानी मरूदेवी भोजन का एक ग्राम भी व ममय मे समाप्त कर पा रही थी । आनन्द सागर मे डूबी रा ग्राज फूली न समा रही थी ! सारा महल, कोना कोना, महल ।