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श्रागन्तुक सभी राजकुमार जयकुमार के साथ थे । सभी ने मंगल स्वागत के साथ वाराणसी में प्रवेश किया ।
ग्राज वाराणसी दुलहन सी सजी चमक रही थी। चारो मोर खुशियो की बहार छाई हुई थी। विवाह मण्डप मे जयकुमार और सुलोचना अनेक उमगो को सिमेटे हुए पारिसग्रहण सस्कार की रीति निभा रहे थे ।
मंगल परिणय कार्यक्रम कुशल पूर्वक समाप्त हुया । राजा श्रकम्पन ने राज भवन मे ही एक कक्ष अत्यन्त मधुरता के साथ सजाया हुआ उन्हे विश्राम करने के लिए दिया ।
प्रथम मिलन की रात को अनेक उमगो की उमडती लहरो मे तैरते, फिसलते, नहाते, और मौज लेते हुए दोनो ने एके दूसरे में खोकर विश्राम किया ।