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श्राप
( १६३ )
BADAS
अरे | | | आप फिर चुप रह गई कहिए 'कहिए "क्या
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'हां हां मुझे जयकुमार जी भा
गए है।' परिचायिका
'
को प्रागे नहीं बोलने दिया थोर इतना ही कहकर सुलोचना ने जयमाला जयकुमार के गले मे डाल दी ।
चारो ओर से विजयध्वनि गूज उठी । जयकुमार को जय का नारा गूज उठा और सभी धन्य-धन्य कहने लगे । वातावरण मे अनेक बातों ने जन्म लिया । कोई कहता-
1
'वाह ! वाह ! क्या पसन्द है ? 'सत्य हो निष्पक्षता और प्यार की पसन्द है
[:
कोई कहना
..
'सत्य ही ग्रानन्द दायक पसन्द है । वेचारा चक्रवति का पुत्र केकीति तो बैठा का बैठा ही रह गया ।'
कोई कहता
'प्रजी । क्या खाक की पसन्द है । एक चक्रवर्ती के वैभव को लात मारकर उसके नौकर को पसन्द किया है
}"
कोई कहता
'अजी | नोकर है तो क्या हुआ । उसमे कमी किमो बात की है। जो योग्यता जयकुमार मे है, उतनी चक्रवती के पुन में कहा । विवाह राजकुमार से करना है या वैभव से ।'
कोई महिला कहती ..
'वारी वारी जाऊँ । बहुत ही सुन्दर वर पसन्द किया है ।' सहेलियाँ आपस मे कहती
'भाग्यवान है यह राजकुमार जिसको हमारी सहेली ने पसन्द किया है ।
इस प्रकार अनेक प्रकार की बाते होने लगी । उबर राजकुमार