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इसवाधिक प्रयोजन से किसी को विरोध नहीं होना चाहिये और ना ही कोई अपना महत्व कम समझेगा ।
प्रताप सव शान्ति से विराजे रहे और आयोजन की सफलता मे महयोग देने का कष्ट करे | धन्यवाद
घोषणा पत्र को सुनकर विशाल स्वयम्वर मण्डप में शान्ति छा गई। सभी राजकुमार श्रव और भी तनकर बैठने लगे ।
अपने-आपमे सिमटी हुई, सजी-धजी सुलोचना अपने कोमल नेत्र की पलकें नीची करती हुई - परिचायिका के साथ ग्रागे बढी । सब दर्शको और राजकुमारो की दृष्टि सुलोचना पर थी। सुलोचना अपने हाथों ने सुगन्धित पुप्पो से सजी हुई मणियों से बनी हुई सुन्दर माला लिए हुए थी ।
परिचायिका एक राजकुमार के पास रुकी और परिचय देने लगी
'राजकुमारी जी । देखिए, ये हैं, पृथ्वी सम्राट चक्रवर्ती महाराज भरत के सुयोग्य पुत्र अर्ककीर्तिजी | श्राप रूपवान, ज्ञानवान है - साथ ही एक सम्राट के पुत्र भी हैं। आयु और कद भी समान है। इसके साथ ही
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परिचायिका और कुछ कहती पर बीच में ही सुलोचना ने 'आगे वढों' का शब्द कहकर परिचायिका का मुँह बन्द कर दिया । जो राजकुमार कोति तन कर बैठे हुए थे वे मुरझाए पुष्प के समान हो गए। सुलोचना श्रागे कदम उठा चुकी थी । आगे वाले राजकुमार के पास रूक कर परिचायिका ने परिचय दिया
'इधर देखिएगा राजकुमारी जी आप है महामण्डलेश्वर महाराज पृथ्वीपति' के सुपुत्र मेघरथ जी । ग्रापके पिता महान् मासक है, और प्राप भी रणधीर, वलवीर और दिलगीर हैं। यदि आपको .."