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१३- कन्या ने अपने पति का स्वयं चयन किया
स्वयंवर मण्डप खचाखच भरा हुआ है । मन लोभने ओर नेवानन्द देने वाले रमणीक आसन पर भिन्न-भिन्न स्थानो से आये हुए राजकुमार सजे से, धजे से और खिचे से - अपने चहरो पर रोब, मुस्कराहट बिखेरे हुए बिराजे हुए हैं । सब उस प्रतीक्षा की घडियों को गिन रहे है, जिस घडी मे - मृगलोचनी 'सुलोचना' का प्रवेश होगा
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स्वयंवर मंडप के चारो मुख्य द्वारो पर मंगल वाद्य बज रहे है । स्वयवर मण्डप मे ठीक मध्य भाग पर विशाल और अमूल्य कालीन पर कुछ अप्सरा को भी मात देने वाली युवतिया मनमोहक एव चित्त को भुमा देने वाला नृत्य कर रही है
दर्शक गरण जिनमे पुरुष भी है, नारियाँ भी ह और युवक व युवतिया भी है सब एक नई आशा की किरण प्राप्त करने की उत्कण्ठित अभिलापा लिए हुए अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए हैं
सामने विशाल और भव्य मंच पर राजा अकम्पन और रानी सुप्रभा बिराजे हुए है - पास ही मत्री गणो के आसन है । ग्रगल बगल और पीछे सेवक सेविकार्य पखा, भारी, चँवर, छडी प्रादि उपसाधन लिए हुए मौन मुस्करित मुद्रा मे खडे हुए है ।
तभी विगुल बजा । मधुरं वाद्य की ध्वनि तेज हो उठी ।