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'क्यो क्या बात है?' 'वात तो जरूर भी कुछ न कुछ है महारानी जी।' 'क्यो ।'
'क्योकि आज तो आप पूर्ण विकसित पुष्प के समान खिली हुई हो । आप का अंग प्रत्यग भी आपसे सम्हाले नही सम्हल 'हा है और चेहरा ? "चेहरा तो आपकी सारी बाते कह रहा है।' चल हट | "ज्यादा जबान क्यो चलाये जा रही है। यह सत्य है के तू मेरी सहचरी है-पर ज्यादा नहीं बोला करते।' ____ ना सही। पर आप मन को भी तो समझा लीजिए वह तो बोलने वालो को भी बोलने को कह रहा है।' 'ओह ! - मै क्या करू | आज "आज तो।'
तभी दासी आगई । निवेदन करने लगी · 'आपका सन्देश महाराज श्री के चरणो मे पहुंचा दिया गया है । महाराज श्री ने माज्ञा प्रदान करदी है।'
'मोह ..' रानी मरुदेवो धीमी धीमी, मस्त भरी चाल से चलने लगी। राज दरबार विखर चुका था अर्थात सभी उपस्थित जन जा चुके थे। ___महाराज अपनी प्रियतमा की प्रतीक्षा में बैठे थे। तभी रानी पहुची । महाराज नाभि ने अपना अर्धासन दिया और रानी महाराज श्री के निकट बैठ गई।
'कहो । “आज यहां आने का क्या कारण वन पड़ा?' 'स्वामिन ....।' 'बोलो बोलो "।' 'प्राज मैं बहुत ही प्रसन्न भी हूँ और चिन्तित भी।' 'परे । यह सट्टा मीठा स्वाद क्यो ? 'स्वामिन....।' 'कहो भी ! क्या प्रसग ऐसा सामने आ गया है। जिससे मन