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( १० )
गान प्रस्तुत किया । रानी श्रव मदमाती हस्थिनी की भाति उठकर चलने लगी । प्रसन्न चेहरा-मीठी मीठी मुस्कराहठ के फूल बरसा रहा था। दासियो की ओर शरमिली नजर विखेरती हुई रानी हसनी की चाल चल रही थी ।
स्नान कक्ष मे पहुच कर रानी ने दैनिक, कार्य किये। सुगन्धित जल से स्नान किया । दासियाँ उसके प्रत्येक ग्रग को शीतल जल से सुगन्धित उबटनों के द्वारा सहलाती हुई घो रही थी। आज स्नान करती हुई भी रानी मरूदेवी प्रसन्नता की लहरो मे खोई हुई थी । अग की प्रत्येक कलियाँ खिल रही थी ।
स्नान कर चुकने के पश्चात् सुन्दर वस्त्राभूषण से सुन्दर सुडोल शरीर को सजाया गया श्राज प्रत्येक आभूषण, प्रत्येक परिधान, मुस्करा रहा था, नाच रहा था और शरीर से चिपका जा रहा था। रानी तो खोई हुई थी अपने आप मे ।
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'महाराज श्री कहाँ है ? मुख खुला और मोती चमक उठे । रानी ने आनन्द भरे शब्दो मे एक दासी से उक्त प्रश्न किया । रानी ने भी अपने शब्दो को अपने कान से सुना तो लज्जा गई अपने आप मे । जैसे होश सम्हलती सी रानी ने एक दम पूछा 'मैंने अभी क्या कहा था ?"
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'आपने पूछा था कि महाराज श्री कहाँ है
'श्रोह हा तो बताओ कहाँ है महाराज श्री ?"
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'महाराज श्री तो सदैव ही इस वक्त राजदरबार में विराजे रहते है । क्या आपको "
'हा ' हा ' मुझे ज्ञात है । ज्ञात है । जाओ । सन्देश निवेदन करो कि मैं आ रही हैं । '
'जैसी श्राज्ञा महारानी जी !'
एक दासी धीमे धीमे कदम उठाती चली । श्रन्य दासियां विहम उठी। तभी रानी ने
पूछा।