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( १०२ ) विराजे हुए सम्नाट भरत हैं।'
'कोई भी हो । यो बिना आज्ञा के किसी के प्रदेश में चोरी चोरी घुस जाना उचित नहीं है।
'आप कौन है?"
'यह जो मामने आपको एक प्रदेश दिखाई दे रहा है ना .. वह देखो"ऊंचे-२ भवन, विशाल मन्दिर के शिखर, विशाल वृक्ष और विशाल ध्वजाएं दिखाई दे रही है ना तुम्हे ?'
"हाँ हाँ । दिखाई दे रही है ? ___ 'यह प्रदेश हमारे महाराज का है । जिनका प्रचण्ड प्रताप नहदिशि उज्जवलित हो रहा है जिनको हु कार मात्र से और जमीन करोदने लगता है और अपने को मरा हुआ सा समझ बैठता है। जिनके पादेश से सूर्य उगता हे और छिपता है जो वीर हैं, धीर है और महादानी व रक्षक भी ।" मैं उनका दूत हूँ।'
। तो अब तुम क्या चाहते हो ?'
'मुझे माझा मिली है कि आपको प्रागे न बटने दू । श्रापको सेना के द्वारा गु जाऐ हुए जय जय कार से ही हमारे महाराज ने अनुमान लगा लिया कि कोई अाक्रमणकारी है। आप बिना रण पोगत दिलाए यो मागे नहीं बट माते ।
'और यदि गण कोगन न दिखाया जाए तो " ' तो प्रापको वापिस ही लोट जाना उचित है।'
"दूत महोदय । श्या पापो सुना नहीं कि भरत महाराज भारत के घर पपी में से अधिकतर पर अपनी यिय प्राप्त कर
पोरगव शेप रा पर विजय प्राप्त करना पठिन नही गर गया। जाग्रो । मह दो अपने महागारमेहदे भी गपना गाऔरल दिलाने में लिपारी पारे।"
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टोको पारेमा थारा गोगन सभी देनी पाप गारगे या तो अन्या